30 June 2015

कछुए की अँगूठी का रहस्य


मित्रों मेरा पिछला आर्टिकल "कछुए की अँगूठी का रहस्य"

     इस लेख सम्बन्धी मुझसे कुछ लोगों ने प्रश्न किया कि सर हमने कुछ समय पहले कछुए की अंगूठी धारण की थी, पर उसके बाद मन अशांत और चिड़चिड़ा रहने लगा और इसके चलते अँगूठी उतार दी।  और ऐसे में आपका विज्ञान और उसका सिद्धांत कि कछुए की अंगूठी धारण करने से सम्रद्धि आती हैं, वह धरा का धरा रह गया। ऐसा क्यों ?

     मित्रों कछुए की अँगूठी धारण कराने के पीछे हमारा एक मात्र प्रयोजन होता हैं कि व्यक्ति के "ध्यान" की दिशा को कछुए से सम्बंधित धारणाओं व गुणों इत्यादि से जोड़ना। यानी व्यक्ति के स्वभाव में कछुए के स्वभाव जैसे गुणों को विकसित करना।

     मित्रों अंगूठी धारण करने के बाद जैसे-जैसे हमारा जुड़ाव इस अँगूठी के साथ बढ़ता रहता हैं वैसे-वैसे स्वभाव में परिवर्तन होना शुरू हो जाता हैं। और ऐसे में उन लोगों को इससे प्रारम्भ में कुछ तकलीफ महसूस होने लगती हैं, जिनका स्वभाव कछुए के स्वभाव से विपरीत यानी उद्दण्ड, फुर्तीला या खरगोश के स्वभाव जैसा होता हैं। मित्रों निसन्देह स्वभाव में अचानक आने वाले इस परिवर्तन के कारण किसी-किसी को कुछ चिड़चिड़ापन जरूर आ सकता हैं।

     पर 90 दिनों तक जब निरन्तर हम इस अँगूठी के संपर्क में रहते हैं तो कछुए का गुण-स्वभाव हमारे सबकोंसियश मस्तिष्क में प्रोग्राम हो जाता हैं। जैसे कंप्यूटर में जब नया वर्जन आ जाता हैं तब कुछ दिनों तक अजीब सा लगता हैं ना, ठीक वैसे ही जब स्वभावगत परिवर्तन आते हैं तब थोडा अजीब सा महसूस होता हैं। और ऐसे में हम ये समझ कर अँगूठी निकाल देते हैं और बोलते हैं कि अँगूठी सूट नही हुई।

     मित्रों रत्न-धारण और कछुए की अंगूठी धारण करने के मूल में एक ही प्रयोजन हैं, भावों का परिवर्तन। क्योंकि भाव से स्वभाव बनता हैं, और स्वभाव के प्रभाव से कर्म संपन्न होता हैं, जिसके द्वारा हम फल तक की यात्रा करते हैं। इसलिए मित्रों अच्छा भाव होगा, तो अच्छा ही स्वभाव होगा, और स्वभाव अच्छा हुआ तो उसका प्रभाव और फल भी अच्छा ही होगा।

     भाव-स्वभाव-प्रभाव-क्रिया-कर्म-फल...(कर्म-सिद्धांत)

     मित्रों कछुए की अँगूठी धारण करने से सम्रद्धि आती हैं ऐसा मैंने सुना था। पर जब तक स्वयं किसी तर्क पर न पहुँच जाऊँ तब तक में उस बात को नही मानता, ये मेरा स्वभाव हैं। किसी भी उपाय के विज्ञान को समझे बिना उसका उपयोग करना मात्र मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं। शोध किसी की भी हो, पर उस पर अपना अनुभव एक मजबूत आत्मविश्वास पैदा करता हैं।


        Astrologer & Philopher
            Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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25 June 2015

क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर


क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर ?

     मित्रों अक्सर हम सुनते है कि जब किसी को नजर लग जाती है तो उसे कहते हैं कि अपनी मुट्ठी में राई लेकर अपने सिर से सात बार वार कर फेंक दो। क्या राई को सात बार वार देने क्या नजर उतर सकती हैं ? आइये इसके पीछे क्या विज्ञान काम करता हैं समझने का प्रयास करते हैं।

     मित्रों अक्सर आप देखते होंगे की राई को जब किसी प्लास्टिक बेग से निकालते हैं तो राई उस प्लाष्टिक बेग से चिपक जाती हैं। वो उसके चुम्बकीय गन के कारण होता हैं। हालाँकि संसार की सभी चीजों में अपना एक चुम्बकीय गुण होता हैं पर राई में घर्षण से उसका चुम्बकीय गुण जल्दी सक्रिय हो जाता हैं जिसके चलते ये जल्दी ही किसी के औरा के संपर्क में आकर उसके नकारत्मक फिल्ड को अवशोषित कर लेती हैं।

     जब राई को सात बार हमारे शरीर पर से वारा जाता हैं तब इसका संपर्क हमारे शरीर के आभामंडल से होता हैं, जिसे हम सुरक्षा चक्र भी कहते हैं। राई के लगातार हमारे आभामंडल से टकराने से इसका चुम्बकीय गुण सक्रीय होकर हमारे शरीर के सातों चक्रों में फैली नकारात्मकता को सोख लेता हैं। सात बार वारने का मतलब हमारे सूक्ष्म शरीर के सातों चक्रों का शुद्धिकरण करना होता हैं। सात बार राई को वारने के बाद उसे घर से कुछ दूर नाली में फेंक दिया जाता हैं या जलाकर नष्ट कर दिया जाता हैं।

     मित्रों वैसे आभामंडल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसके लिए साधारण तौर पर इतना बता देता हूँ कि आभामंडल हमारे शरीर का सुरक्षा चक्र होता हैं। जब ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अच्छी-बुरी दशा चलती हैं तो उसका सबसे पहला प्रभाव हमारे आभामंडल पर ही पड़ता हैं। पर अगर हम किसी अच्छी संगत, अच्छे विचार या किसी ज्ञानी गुरु के संपर्क में हो या किसी भगवान् में हमारी आस्था बहुत मजबूत हो तो ग्रहों के बुरे प्रभाव की रश्मियाँ हमारे उस आभामंडल यानी सुरक्षा चक्र का भेदन करने में कामयाब नही होती। इसलिए जो लोग निरंतर सत्संग करते हैं, सकारात्मक विचारों के संपर्क में रहते हैं ऐसे पुण्यशाली लोगों पर ग्रहों, टोने-टोटके और नजर इत्यादि का बुरा प्रभाव आसानी से नही पड़ता। और न ही कोई नकारात्मकता उनके आभामंडल को भेद पाती हैं।

     मित्रों ऐसे कई सारे टोटके इत्यादि है जिन्हें हम अंधविश्वास का नाम देकर नजर अंदाज कर देते हैं। क्योंकि हमें इनके गर्भ में छूपे सिद्धांत का पता नहीं होता।

(वैसे मित्रों कलयुग के चलते सदियों से चलती परम्पराओं के साथ आजकल कुछ बेतुके अंधविश्वासों का जन्म भी हो गया हैं जिनसे हमें सावधान रहने की जरुरत हैं। बिना वैज्ञानिक अर्थ के किसी बात को मान लेना मात्र मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं)


       Astrologer & Philopher
            Gopal Arora
 









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20 June 2015

Electro magnetic field


     दोस्तों जिसे हम लोग आम भाषा में आत्मा, भूत या देव ईत्यादि नामों से जानते हैं वास्तव में वो एक "electro magnetic filed" है, यानी विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र हैं। और इस चुम्बकीय क्षेत्र में हमारे जन्म-जन्मांतरों के डेटा "चुम्बकीय तरंगो" के रूप में रक्षित होते हैं।

     दोस्तों कम्प्यूटर, सी डी या हार्ड डिस्क इत्यादि में रक्षित सभी डेटा मूल रूप में "electro magnetic filed" के रूप में ही रक्षित होते हैं। और सीडी या हार्ड डिस्क ईत्यादी घटक तो मात्र इन चुम्बकीय तरंगो को सुरक्षित रखने का साधन मात्र होते हैं। बाकी ये सभी डेटा कम्प्यूटर ईत्यादि के माध्यम से "चुम्बकीय तरंगो" के रूप में ब्रम्हांड में ही रक्षित होते हैं। बिना कम्प्यूटर इत्यादि के सहयोग के बिना इनका निर्माण नही हो सकता।

     बिल्कुल ठीक ऐसे ही हमारी आत्मा रुपी ऊर्जा के कण पर जन्म-जन्मान्तर के हमारे विचारों, भावों और कर्मो के डेटा रिकॉर्ड होते हैं। जब हम जन्म लेते हैं तब आत्मा के साथ ये रिकॉर्डेड डेटा शरीर के विकास के साथ न्यूरोन्स द्वारा रीड होकर शरीर रूपी कम्प्यूटर के साथ रन होने लगते हैं। जन्म-जन्मांतरों से रक्षित ये डेटा एक प्रोग्राम के रूप में हमारे स्वभाव के साथ सक्रीय हो जाते हैं। और उन्हीं रिकॉर्डेड प्रोग्राम के चलते हमारा स्वभाव चुनाव प्रक्रिया द्वारा कर्मो का चुनाव कर अच्छे-बुरे परिणामों की यात्रा करता हैं। और इसके साथ-साथ हमारा कम्युटर सिस्टम इस जन्म के भावों, विचारों और कर्मो को निरंतर अपनी मैमोरी में "electro magnetic filed"  के रूप में निरंतर रिकॉर्ड करता रहता हैं। 

     एक बात ध्यान रखे की जैसे हार्ड डिस्क ईत्यादि में डेटा को रक्षित करने के लिये कंप्यूटर इत्यादि घटक की आवश्यकता होती हैं ठीक वैसे ही हमारी आत्मा पर रक्षित ये डेटा भी बिना शरीर के ना तो रिकॉर्ड हो सकते हैं और ना ही रन हो सकते हैं। इसलिए अक्सर हम कथाओं में सुनते हैं की देवता लोग भी ये मनुष्य शरीर पाने हेतू लालायित रहते हैं। क्योकि बिना शरीर के देवता भी कुछ नही कर सकते और ना ही प्रेत कुछ कर सकते हैं।

     अक्सर हम जब किसी शरीर में देव या प्रेत ईत्यादि की उपस्थिति देखते हैं तब व्यक्ति के शरीर की हरकते बदल जाती हैं। उसकी आवाज इत्यादि भी बदल जाती हैं। मित्रों आत्मा, प्रेत या देव ईत्यादि के "electro magnetic filed" किसी शरीर में प्रवेश नही करते बल्कि हमारे मस्तिष्क के न्यूरोन्स इनके द्वारा भेजे गये चुम्बकीय सन्देशों को रीड कर प्रतिक्रिया शुरू कर देते हैं। जैसे एक सीडी में लतामंगेशकर के गाने हैं तो क्या सीडी पड़े-पड़े बोल उठेगी ? नही ना... उसके लिए हमे कम्प्यूटर या सीडी प्लेयर ईत्यादि की जरुरत होगी। सीडी में रक्षित डेटा का सम्पर्क कम्प्यूटर ईत्यादि से होने पर ही लता मंगेशकर की आवाज में गाने बजने शुरू होंगे। बस ठीक इसी तरह हमारे मष्तिष्क के न्यूरोन्स ऐसे ही किसी Magnetic Field ke संपर्क में आने पर वैसी ही प्रतिक्रिया देंगे।

     दोस्तों सारा का सारा संसार इन्ही तरंगो के रहस्यों से भरा पड़ा हैं। जो मैंने आपको बताया हैं वैसा आपने कही नही पढ़ा होगा। क्योंकि ये शोध बिलकुल नई हैं जिस पर विशवास कर मान लेना अभी फिलहाल नामुनकिन हैं। पर मित्रों इन पर बहुत शोध चल रहा हैं और आने वाले सौं वर्षों में इस क्षेत्र में एक बहुत बड़ी क्रांति देखी जा सकती हैं। आजतक हम जो सुन रहे हैं और पढ़ रहे हैं वो  धर्म और धार्मिक ग्रंथों की सीमा के दायरे में सिमित हैं। पर इस फिलोसोफी तक पहुँचने के लिए आपको धर्म की सीमाओं से ऊपर उठना होगा।
लिखने को और बताने को बहुत कुछ हैं पर समय का अभाव हैं दोस्तों। जब भी समय मिलेगा तब इस विषय पर और चर्चा करेंगे।

     मेरे विचार और सोच लीक से हटकर हैं। और मैं जानता हूँ की वर्तमान परिपेक्ष में इन तथ्यों को स्वीकारा जाना नामुनकिन हैं। क्योकि भविष्य की बातों को वर्तमान में स्वीकार करना कठिन हैं। ये विचार मेरे स्वतंत्र विचार हैं, मैं किसी पर अपने विचार थोप नही रहा हूँ। किसी को इसमें रूचि हैं तो स्वयं शोध करें। ध्यान के माध्यम से ब्रम्हांड की इन सूक्ष्मताओं से संपर्क किया जा सकता हैं। ध्यान के सहारे जब आप की ऊर्जा सहस्त्रार तक पहुँचती हैं तो आपके मष्तिष्क में चींटिया सी रेंगने लगती हैं। विज्ञान की भाषा में आपके न्यूरोन्स को अत्यधिक ऊर्जा मिलती हैं जिसके चलते आपके न्यूरोन्स की सेन्सेटिविटी बढ़ जाती हैं। और इसी के चलते आपकी चुंबकीय तरंगे ब्रम्हाण्डीय रहस्यों को खोजने में कामयाब हो जाती हैं।

              Astrologer & Philopher
                    Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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