13 May 2015

आखिर क्या रहस्य छुपा हैं कछुए की आकृति वाली अँगूठी में


मित्रों आजकल अधिकतर लोगों को कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी धारण किये हुए देखा जाता हैं।

      पर क्या कछुऐ की अँगूठी वास्तव में सम्रद्धि लाती हैं ?

      क्या इसके धारण करने से जीवन में खुशहाली आती हैं ?

      आइये इसके पीछे क्या सिद्धांत काम कर रहा हैं उसको समझते हैं।

     मित्रों आपने अक्सर मेरे लेख पढ़े होंगे। मैं हमेशा एक ही बात पर जोर देता हूँ कि, जीवन के इस सफर में आज हम जहाँ पर भी खड़े हैं, और जैसी भी स्तथि में हैं, उसका मूल कारण हमारा "ध्यान" हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसका ध्यान जिस और होता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी उस और बहने लगता हैं। और हमारे मन के भावों की ऊर्जा ध्यान के माध्यम से जिस और बहती हैं, हम उसी को प्राप्त होते हैं या उस लक्ष्य को पाते हैं।

    बस मित्रों कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी पहनने के पीछे भी यही "ध्यान" वाला सिद्धांत ही काम कर रहा हैं।
अँगूठी को धारण करने के बाद जब-जब हमारा "ध्यान" इसकी और जाता हैं तब कछुए के साथ जुडी धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर फ्लेश होती हैं। यह क्रिया स्वतः ही संपन्न होती हैं। मित्रों जब भी किसी वस्तु चित्र इत्यादि की तरफ हमारा ध्यान जाता हैं तब तत्काल उससे सम्बंधित धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर प्रकट हो जाती हैं। पूजा-पाठ इत्यादि के पीछे भी यही प्रयोजन हैं कि हम इनके माध्यम से ईश्वर से जुड़े रहे।

     मित्रों कछुआ धैर्य, शांति, निरन्तरता (Continuity), लक्ष्य और सम्रद्धि का प्रतिक हैं।  कछुए और खरगोश की कहानी तो सभी जानते हैं कि कैसे कछुए ने Continuity रखते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया। और कछुआ लक्ष्मी जी का प्रिय भी हैं। क्योकि लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी, इसलिए समुद्र से निकलने वाले सभी जीव मछली, कौड़ी, शिप, कछुआ इत्यादि सभी लक्ष्मी जी के मित्र माने जाते हैं।

     मित्रों कछुए को देखते ही उससे जुड़ी सारी धारणाओं की तरफ हमारा "ध्यान" चला ही जाता हैं, और इसी के चलते हमारे ध्यान की ऊर्जा का प्रवाह उस और हो जाता हैं, जिसके चलते हम धैर्य और शांत स्वभाव को रखते हुए समय पर लक्ष्य का भेदन कर सम्रद्धि को प्राप्त करते हैं।

     मित्रों यहाँ में एक बात और कहना चाहूँगा कि कछुए की आकृति वाली अँगूठी अगर किसी बच्चे को पहना दी जाये या किसी ऐसे व्यक्ति को पहना दी जाये जिसे कछुए से जुड़ी इन धारणाओं का ज्ञान नही, तो उसके लिए ये अँगूठी मात्र एक आभूषण साबित होगी। उसे इसका कोई लाभ प्राप्त नही होगा। क्योंकि उसके मन की ऊर्जा का प्रवाह इस और नही होगा।

     मित्रों हमारे धर्म की सभी परम्पराओं के पीछे भी यही सिद्धांत काम करता हैं। इन सभी परम्पराओं से जुड़ी कथा-कहानियों के माध्यम से हमारे "ध्यान" की दिशा को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया जाता हैं। इसलिए कहते हैं "दिशा बदलो, दशा तो अपने-आप बदल जायेगी"। यहाँ दिशा बदलने का मतलब विचारों की दिशा बदलने से हैं।

     मित्रों हमारे ऋषि-मुनियों को पता था कि इंसान इस रहस्य की गहराई को समझ नही पायेगा, इसलिये उन्ही सिद्धांतों को परम्पराओं का अमलीजामा पहना कर हमारे समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया। और हर परम्परा के द्वारा हमारे ध्यान को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया।

     मित्रों अपने गहन शोध के बाद मैंने जब इस "सिद्धांत" को समझा तो मैं हैरान रह गया कि हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषी-मुनियों और दार्शनिकों का चिंतन कितना गहरा रहा होगा, जिन्होंने इस सिद्धांत को समझकर अनेक ग्रंथो और परम्पराओं की रचनाएँ कर डाली।


     Astrologer & Philopher
            Gopal Arora









We are grateful to Mr. Gopal Arora ji  for compiling आखिर क्या रहस्य छुपा हैं कछुए की आकृति वाली अँगूठी में  sharing with us.
यदि आपके पास भी Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें।  हमारी Id है - safalbhariudaan@gmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे ।  Thank You ! 

12 May 2015

मंत्र जाप में अशुद्ध उच्चारण का प्रभाव


     मित्रों कई बार मानव अपने जीवन में आ रहे दुःख ओर संकटो से मुक्ति पाने के लिये किसी विशेष मन्त्र का जाप करता है, लेकिन मन्त्र का बिल्कुल शुद्ध उच्चारण करना एक आम व्यक्ति के लिये संभव नहीं है ।
अक्सर हम जैसे लोग ही कहा करते है कि देवता भक्त का भाव देखते है वो शुद्धि अशुद्धि पर ध्यान नही देते है, पर हमारा ऐसा कहना एक हद तक ठीक है।

     आइये मित्रों कर्म सिद्धांत के इस नियम को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों शास्त्रों में लिखा हैं। 

मूर्खो वदति विष्णाय, ज्ञानी वदति विष्णवे ।
द्वयोरेव संमं पुण्यं, भावग्राही जनार्दनः ।।

अर्थात -
मूर्ख व्यक्ति "" ऊँ विष्णाय नमः"" बोलेगा।
ज्ञानी व्यक्ति "" ऊँ विष्णवे नमः"" बोलेगा।

     मित्रों यहाँ इस मन्त्र में सिर्फ एक मात्रा के गलत प्रयोग (विष्णाय=विष) से अर्थ का अनर्थ हो गया। फिर भी मित्रों इन दोनों उच्चारणों का पुण्य समान ही मिलेगा, क्योंकि भगवान केवल भावों को ग्रहण करने वाले है। और जब कोई भक्त भगवान को निष्काम भाव से, बिना किसी स्वार्थ के याद करता है तब भगवान भक्त कि क्रिया ओर मन्त्र कि शुद्धि-अशुद्धि के ऊपर ध्यान नही देते है बल्कि वो तो केवल भक्त का भाव देखते है।
     पर मित्रों जब कोई व्यक्ति किसी विशेष मनोरथ को पूर्ण करने के लिये किसी मन्त्र का जाप या स्तोत्र का पाठ करता है तब सम्बन्धित देवता उस व्यक्ति कि छोटी से छोटी क्रिया ओर अशुद्ध उच्चारण पर ध्यान देते है। और जैसा वो जाप या पाठ करता है वैसा ही उसको फल प्राप्त होता है।

आइये इसी सन्दर्भ में एक व्रतांत बताता हूँ।

     एक बार एक व्यक्ति कि पत्नी बीमार थी। वो व्यक्ति पंडित जी के पास गया ओर पत्नी कि बीमारी कि समस्या बताई। पंडित जी ने उस व्यक्ति को एक मन्त्र जप करने के लिये दिया ।

      मन्त्र था  ""भार्यां रक्षतु भैरवी"" अर्थात हे भैरवी माँ मेरी पत्नी कि रक्षा करो। अब वो व्यक्ति मन्त्र लेकर घर आ गया। ओर पंडित जी के बताये मुहुर्त में जाप करने बैठ गया..    अब जब वो जाप करने लगा तो " रक्षतु" कि जगह " भक्षतु" जाप करने लगा। वो सही मन्त्र को भूल गया । " भार्यां भक्षतु भैरवी" अर्थात हे भैरवी माँ मेरी पत्नी को खा जाओ । "" भक्षण"" का अर्थ खा जाना है। अभी उसे जाप करते हुये कुछ ही समय बीता था कि बच्चो ने आकर रोते हुये बताया.. पिताजी माँ मर गई है। ऐसे में उस व्यक्ति को दुःख हुआ... साथ ही पण्डित जी पर क्रोध भी आया.. कि पंडित ने ये कैसा मन्त्र दे दिया।

     कुछ दिन बाद वो व्यक्ति पण्डित जी से जाकर मिला ओर कहा कि आपके दिये हुये मन्त्र को में जप ही रहा था कि थोडी देर बाद मेरी पत्नी मर गई... पण्डित जी ने कहा.. आप मन्त्र बोलकर बताओ.. कैसे जाप किया आपने... वो व्यक्ति बोला:- "" भार्यां भक्षतु भैरवी""  पण्डित जी बोले:- तुम्हारी पत्नी मरेगी नही तो और क्या होगा। एक तो पहले ही वह मरणासन्न स्थिति में थी.. और रही सही कसर तुमने " रक्षतु" कि जगह "" भक्षतु!" जप करके पूरी कर दी.. भक्षतु का अर्थ है !" खा जाओ... मन्त्र तुमने गलत जपा और अब दोष मुझे दे रहे हो।
तब उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ.. तथा उसने पण्डित जी से क्षमा माँगी ।

     मित्रों इस लेख का सार यही है कि जब भी आप किसी मन्त्र का जाप अपने किसी विशेष मनोरथ को पूर्ण करने के लिये करे तब क्रिया ओर मन्त्र शुद्धि पर पूरा ध्यान दे। अशुद्ध पढने पर मन्त्र का अनर्थ हो जायेगा... ओर मन्त्र का अनर्थ होने पर आपके जीवन में भी अनर्थ होने कि संभावना बन जायेगी। इसलिये मित्रों अगर किसी मन्त्र का शुद्ध उच्चारण आपसे नहीं हो रहा है.. तो बेहतर यही रहेगा.. कि आप उस मन्त्र के साथ छेडछाड नहीं करे, बल्कि योग्य पंडित द्वारा ही जाप करवायें।



     Astrologer & Philosopher
           Gopal Arora
                                                                                   






We are grateful to Mr. Gopal Arora ji  for compiling मंत्र जाप में अशुद्ध उच्चारण का प्रभाव  sharing with us.

यदि आपके पास भी Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें।  हमारी Id है - safalbhariudaan@gmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे ।  Thank You ! 

Sign Up


नयी पोस्ट ईमेल में प्राप्त करने के लिए Email SignUp करें

BEST OF SAFALBHARIUDAAN.COM