31 March 2015

एक घंटा व्यायाम करें


     इंसान सोचता तो यह है कि वह अपने लिए जी रहा है, लेकिन वह जिस तरह समय ख़र्च करता है, उससे यह लगता ही नहीं है कि वह अपने लिए जी रहा है। अक्सर वह ऐसी नौकरी करता है, जिसमें उसे मज़ा नहीं आता है।  अक्सर वह ऐसा खाना खाता है, जो उसकी पत्नी या बच्चों की पसंद के हिसाब से बनता है।  जब वह थका-माँदा घर लौटता है, तो उसे टी.वी. पर भी दूसरों की पसंद के कार्यक्रम देखने पड़ते है।  यानी वह अपने लिए तो समय निकल ही नहीं पाता। 

     आपको हर दिन एक घंटा खुद के लिए निकालना चाहिए।  तेईस घंटे दूसरों के लिए, एक घंटा अपने लिए।  और इस एक घंटे में आपको अपने शरीर की देखभाल करनी चाहिए।  अपने स्वास्थ और सौंदर्य की देखभाल करने के लिए एक घंटे का समय ज्यादा नहीं है।  आख़िर शरीर की बदौलत ही तो आप अपने सारे काम कर रहे है।  अगर यही स्वस्थ न रहे, तो आप इस सुन्दर संसार का आनंद कैसे ले पाएँगे ?  यही तो वह मुर्गी है, जो रोज़ आपको सोने के अंडे देती है और आप है कि इसी का पेट चीरने पर आमादा है।  आप सुबह से शाम तक स्वादिष्ट चीज़े कहते रहते है, जिनकी शरीर को जरूरत नहीं होती और जिस व्यायाम की इसे ज़रूरत होती है, उसे आप कभी नहीं करते है।  अब आप ही बताए कि यह शरीर के साथ अन्याय नहीं, तो और क्या है ?

     ध्यान रखें, यदि आपने अपने शरीर का ध्यान रखने के लिए समय नहीं निकाला, तो आपका बाक़ी समय (और जीवन ) भी ख़तरे  में पड़ जाएगा।  इसीलिए इस सिद्धांत को इस वेबसाइट में शामिल किया गया है।  आप सोच रहे होंगे की समय बचाने वाले टाइम मैनेजमेंट वेबसाइट में समय ख़र्च करने की सलाह क्यों दी जा रही है।  इसलिए, क्योंकि इस एक घंटे का असर आपके बाकि तेईस घंटों पर पड़ेगा।  व्यायाम तो एक निवेश है, जिसका आपको समय-प्रबंधन के संदर्भ में कई गुना फ़ल मिलेगा। 

     एक घंटे में आपको अपने शरीर की देखभाल करनी है।  टहलना है, व्यायाम करना है, योगा क्लास या जिम जाना है, अपने शरीर की मालिश करनी है, यानि कुल मिलाकर शरीर के स्वास्थ पर ध्यान देना है।  समय-प्रबंधन के क्षेत्र में व्यायाम के कई लाभ है - एक तो इससे आपका स्वास्थ अच्छा रहता है, जिससे बिमारी के कारण आपका क़ीमती समय नष्ट नहीं होता।  दूसरे, इससे आपके शरीर के साथ-साथ दिमाग़ में भी स्फूर्ति और चुस्ती आ जाती है।  तीसरे, आपका आलस दूर हो जाता है और आप अपने महत्त्वपूर्ण कार्य पुरे जोश से करने में जुट जाते है।  व्यायाम से आपका शरीर गठीला रहेगा और आपका हुलिया अच्छा दिखेगा।  यदि आप सेल्समैन है, तो अच्छा हुलिया बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि आकर्षक और शारीरिक दॄष्टि से फ़िट सेल्समैन से लोग ज्यादा प्रभावित होते है। 

     बस एक बात का ध्यान रखें।  व्यायाम सही तरह से करें।  अक्सर लोग कहते है, 'मै आज आधा घंटा पैदल चला।'  महत्त्वपूर्ण तो यह है कि  उस आधा घंटे में आप कितने किलोमीटर पैदल चले और कितनी तेज़ी से चले।  यदि आप पैदल चलकर व्यायाम कर रहे है, तो इसके लिए आपको दुरी और समय का सही मिश्रण करना होगा।  आदर्श घूमना होता है पचास मिनिट में पाँच किलोमीटर।  वैसे बेहतर यही रहेगा कि  आप अपनेव्ययम् केवल पैदल चलने तक ही सीमित न रखें।  जॉगिंग करे, योग करें, वेटलिफ्टिंग करें, ताकि व्यायामों की विविधता रहे।  तीस मिनिट में तीन किलोमीटर पैदल चले और तीस मिनिट में बाकी व्यायाम करें।  पैदल चलने के लिए सही समय सूर्योदय के पहले रहता है, क्योंकि उस समय वातावरण में प्रदुषण नहीं होता है और ताज़ा ऑक्सीजन आपके फेफड़ों और दिमाग़ में पहुँचकर आपको ताज़गी से भर देती है। 

छत की मरम्मत का समय तब होता है, जब सूरज चमक रहा हो। 
                                            - जॉन ए.फ. केनेडी  

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30 March 2015

तय करें कि कौन सा काम कब करना है


      हमें बहुत सी भूमिकाओं में काम करना होता है।  पुरुषों को बेटे, पिता, पति, कर्मचारी, सेल्समेन आदि की भूमिकाएं निभानी होती है और ज़ाहिर है, उनके साथ जिम्मेदारियाँ भी जुडी होती है।  पत्नी घर का सामान लाने के लिए आपको बाज़ार भेजना चाहती है, दोस्तों के मोबाइल फोन समय-असमय चले आते है, बिन बुलाए रिश्तेदार आ जाते है, अनचाहे सामाजिक समारोहों और दीगर कार्यक्रमों में जाना होता है।  देखिए, एक बात अच्छी तरह समझ ले।  जीवन कोई फूलों की सेज नहीं है, यह तो कंप्यूटर गेम मारिओ की तरह मुश्किल डगर है।  आपको बतख, खाइयों, काँटों और जीव-जंतुओं की बाधाओं से बचते-बचाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचना है।  बाधाओं से भटकना नही है, बस मंज़िल को ध्यान में रखकर लगातार चलते रहना है।  यही मंजिल तक पहुँचने का उपाय है। 

     जिस तरह एक हाथ की उंगलियाँ एक नाप के नहीं होते, उसी तरह सभी काम भी एक समान नहीं होते। कुछ काम महत्त्वपूर्ण होते है, जिनमें ज्यादा समय और एकाग्रता की जरूरत होती है।  कुछ काम छोटे होते है, जिन्हें आसानी से कभी भी पूरा किया जा सकता है।  और कुछ काम ऐसे होते है, जिन्हें आप नहीं, कोई भी कर सकता है।  यही टाइम मैनेजमेंट काम आता है।  आप महत्त्वहीन काम दूसरों से करवा सकते है और समय ख़रीद सकते है। 

     हमारी एक रिश्तेदार है, जिसे अपने घर में सब्जियाँ या किराने का सामान रखना पसंद नहीं है।  परिणाम यह होता है कि उसके पति को अक्सर बाज़ार जाना पड़ता है।  पति कहता है, 'आज तो भजिए खाने का मन हो रहा है।'  पत्नी जवाब देती है, 'तो बाज़ार से जाकर बेसन ले आओ।'  पति कहता है, 'आज हलुआ बना दो।'  पत्नी कहती है, 'जाकर रवा ले आओ।'  इस तरह वह महिला अपने पति को लगभग हर दिन कोई न कोई सामान लाने बाज़ार भेज़ देती है।  पति भी इतना भला मानुस है कि बिना उफ़ किए रोज़ चला जाता है।  अगर पति-पत्नी समय के संदर्भ में सजग होते, तो वे योजना बनाकर एक ही दिन में हफ़्ते भर का सामान माँगा लेते, जिससे सात दिन का समय ख़राब नहीं होता।  इस तरह के अनेक उदाहरण देखने को मिलते है।  इंटरनेट पर इ-मेल चेक करने गए और सर्फिंग करने में एक-दो घंटे बर्बाद कर दिए।  दरअसर, आपको यह संकल्प कर लेना चाहिए कि  आप महत्त्वहीन काम करने में अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे और केवल महत्त्वहीन कामों में ही पूरा समय देंगे। 

     वैसे आप सप्ताह में एक दिन छुटपुट घरेलू कामों के लिए अलग रख सकते है।  उस दिन योजना बनाकर अपने सभी pending काम निबटा ले।  अगर कोई काम ऑफिस के रास्ते में हो सकता है, तो उसके लिए अलग से समय बर्बाद न करे, बल्कि ऑफिस आते-जाते समय निबटा लें।  ट्रैन का reservation करवाना है, तो लंबी लाइन में लगने के बजाय इंटरनेट पर घर बैठे-बैठे ही reservation करवा लीजिए।  इसमें आपको थोड़ा अतिरिक़्त पैसा तो देना पड़ेगा, लेकिन आपका समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग के सिद्धान्त का पालन कर रहे है और पैसा देकर समय खरीद रहे है। 

     यदि किसी से मोबाइल पर बात करनी है, तो उसके लिए शाम का समय चुनें।  सुबह का क़ीमती समय फालतू कामों में बर्बाद न करें।  यही इंटरनेट और ईमेल के बारे में सही है।  इन कामों में बहुत एकाग्रता की जरूरत नहीं होती और इनमें समय भी बर्बाद होता है, इसलिए इन्हे अपने खाली समय में करें, जब आप बहुत थके हो और अपने दिमाग़ को एकाग्र न कर सकते हो।  सुबह-सुबह टी.वी. से भी दूर रहें।  सुबह तो अपने सबसे महत्त्वपूर्ण काम करें, क्योंकि सुबह के कामों से ही आपके पूरे दिन की दिशा तय होती है।  अगर आप विज्ञार्थी है, तो सुबह सबसे मुश्किल विषय पढ़े, अगर आप सेल्समेन है, तो सुबह सेल्स कॉल करें। 

     देखिए, चाहे आपमें कितना भी अनुशासन हो और आप योजना पर कितनी ही निष्ठा से चलते हो, कई मौक़े ऐसे आते है, जब आपका काम करने का मुद नहीं होता।  यही वह समय है, जिसमें आपको अपने छुटपुट घरेलू और बाहरी काम निबटालेना चाहिए।  यह टी.वी. के सामने लेटने से तो बेहतर है।  इस संदर्भ में एन बी सी (NBC) के प्रमुख और अमेरिकी प्रोडूयसर जुकर का उदाहरण याद रखें, जिन्हें आंतो का कैंसर था।  वे अपने काम के प्रति इतने समर्पित थे कि एक दिन भी ऑफिस से छुट्टी नही लेते थे।  वे अपनी कीमोथैरेपी शुक्रवार शाम को करवाते थे, ताकि दो दिन की छुट्टियों में आराम करने के बाद वे सोमवार सुबह ऑफिस आ सकें।  काम करने के लिए आप कौन सा समय चुनते है, उसी से सारा फ़र्क पड़ता है। 

हर काम करने के लिए समय कभी पर्याप्त नहीं होता है, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण काम को करने के लिए समय हमेशा पर्याप्त होता है। 
                                      - ब्रायन ट्रेसी  

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26 March 2015

न्यूटन के गति के पहले नियम का लाभ लें


     सरल भाषा में न्यूटन का गति का पहला नियम कहता है - जो चीज़ जिस अवस्था में है, उसी में बनी रहती है, जब तक कि उस पर बाहरी बल का प्रयोग न किया जाए।  वह बहुत ही अदभुत नियम है।  यह वस्तुओ पर ही नहीं, व्यक्तियों पर भी लागू होता है।  आप जिस अवस्था में है, उसी में रहेंगे, जब तक कि बाहरी बल का प्रयोग न हो।  यह बाहरी बल कहा से आता है - या तो दूसरों के दबाव से या फिर आपके अनुशासन से, आपकी स्व-प्रेरणा से। 

     यही पर समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग का सिद्धांत काम आता है - आर्थिक लक्ष्य बनाए।  यही आर्थिक लक्ष्य आपको निरंतर प्रेरित करता है, ताकि आप बाहरी बल यानि अनुशासन का प्रयोग करके अपनी अवस्था को बदल लें।  आपकी आर्थिक स्थिति चाहे जैसी हो, आप अनुशासन का प्रयोग करके उसे हमेशा बेहतर बना सकते है।  जिम रॉन की बात हमेशा याद रखे, 'अनुशासन ही लक्ष्य और सफलता के बीच का पुल है।'

     देखिए, सच तो यह है कि अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का काम आपको खुद ही करना होगा।  दूसरों को क्या पड़ी है, जो वे आपके जीवन को बेहतर बनाने के लिए आप पर दबाव डालें ?  आदमी घड़ी में चाबी भरता है, तो घड़ी की नहीं, अपनी आवश्यकता के लिए भरता है।  दूसरे लोग तो आपके भलाई के लिए नहीं, बल्कि उनकी खुद की भलाई के लिए आप पर दबाव डालेंगे।  वे आपसे अपना काम निकलवाने के लिए आप पर दबाव डालेंगे।  इसलिए यह बात अच्छी तरह समझ ले कि अनुशासन में रहने और म्हणत करने की जिम्मेदारी आपकी है। 

     इस नियम का एक अच्छा पहलू भी है।  जब आप सफलता की डगर पर चलने लगेंगे, तो आप सफलता की अवस्था में तब तक रहेंगे, जब तक कि बाहरी बल का प्रयोग न हो।  जैसा हम पिछले सिद्धांत में देख चुके  ,बहुत से बल आपकी प्रगति में बाधा डालने की कोशिश करेंगे, लेकिन आप उनसे सतर्क रहेंगे और अपनी गति को बरक़रार रखेंगे। 

     एक बार ड्यूक ऑफ वेलिंग्टन ने युवा ब्रिटिश नेता  पामस्टर्न को सुबह साढ़े सात बजे का अपॉइंटमेंट दिया।  एक मित्र ने पामस्टर्न से पूछा कि वे तो रात को देर तक जागते है, फिर वे इतनी सुबह अपॉइंटमेंट के लिए कैसे पहुचेंगे।  पामस्टर्न का जवाब था - 'बहुत आसान है।  यह सोने से पहले मेरा आखिरी काम होगा।'  यही है अनुशासन !  पामस्टर्न जानते थे कि  वह मुलाकात महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए उन्होंने देर तक जागने की अपनी आदत को आड़े नही आने दिया।  उन्होंने अपनी दिनचर्या में थोड़ा फेरबदल करके न्यूटन के गति के पहले नियम का इस्तेमाल किया।  आप भी ऐसा ही कर सकते है।   अनुशासन का इस्तेमाल करके प्रगति की राह पर चल पड़े और सामने आने वाली हर बाधा को दूर करते जाए।

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25 March 2015

निष्चित समय पर काम करें


     हमारे शरीर में एक घड़ी होती है, जिसे बायोलॉजिकल क्लॉक ( biological clock ) कहा जाता है।  जब आप निष्चित समय पर काम करने की आदत डाल लेते है, तो आपका शरीर उसी अनुसार ढल जाता है।  यदि आप हर दिन दोपहर डेढ़ बजे खाना खाते है, तो आपको उस समय अपने आप भूक लगने लगेगी।  यदि आप हर दिन रात को दस बजे सोते है, तो आपको उस समय अपने आप नींद आने लगेगी।  यह बायोलॉजिकल क्लॉक है, जो आपसे निष्चित समय पर निष्चित काम करवा रही है, जो आपसे निष्चित समय पर निश्चित काम करवा रही है, बस आपको आदत डालकर इसमें चाबी भरणी पड़ती है। 

      प्रसिद्ध दार्शनिक इमैनुअल कांट के बड़े पाबंद थे।  वे हर शाम को साढ़े तीन बजे घूमने जाते थे और इसमें एक मिनिट भी इधर से उधर नहीं होता था।  उनकी समय की पाबंदी से उनके पड़ोसियों को यह लाभ होता था कि वे इससे अपनी घडी मिला सकते थे। 

     यदि आप निष्चित समय पर निष्चित काम करने की आदत डाल लेते है, तो उस समय आपका शरीर और मन दोनों ही उस काम को करने के लिए पूरी तरह तैयार होते है।  अगर आप सुबह ठीक छह बजे घूमने जाते है, तो शरीर इसके लिए पूरी तरह से तैयार होता है और आपको इसमें आलस कम आता है।  दूसरी ओर, अगर घूमने का कोई निष्चित समय नहीं है, तो आप आसानी से आलस के शिकार हो जाते है। 

     ख़ास तौर पर अप्रिय कामों के लिए यह आदत बड़ी कारगार होती है।  अगर आपको पढ़ाई करना है, तो उसका निष्चित समय तय कर लीजिए।  अगर आपको सेल्स में कोल्ड कॉल करना है, तो उसके लिए निष्चित समय तय कर लीजिए।  अगर आपको व्यायाम करना है, तो उसके लिए निष्चित समय तय कर लीजिए।  हर महत्त्वपूर्ण काम का निष्चित समय तय करने से आपका शारीरिक और मानसिक रूप से उस काम के लिए पूरी तरह तैयार रहते है। 

     निश्चित समय पर महत्त्वपूर्ण काम करने की आदत डालने के कई फ़ायदे है।  पहला तो यह कि आपको वह काम करने में आलस नही आता है और आप आदतन बिना सोचे-समझे उसे करने में जुट जाते है।  दूसरे, आदत पड़ने पर आपका शरीर और मन पूरी तरह सक्रिय होकर सहयोग देता है।  तीसरे, आपको उसमे आनंद आने लगता है, जिससे काम सरल हो जाता है।  चौथे, समय के साथ-साथ आप उस काम को जल्दी या ज्यादा अच्छी तरह करने के तरीक़े ख़ोज लेते है।  पाँचवे, जब आप नियमितता से एक निष्चित तंत्र में चलते है, तो प्राकृतिक शक्तियाँ भी आपकी मदत करने लगती है।  पूरा ब्रम्हांड एक निष्चित तंत्र में काम करता है, आपको भी ऐसा ही करना चाहिए। 

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12 March 2015

आप जीतने बड़े हो, अपने आपको उतना ही बड़ा मानें


     किसी व्यक्ति की शब्दावली का महत्त्वपूर्ण पैमाना उसके शब्दों की संख्या या आकर नहीं है।  असली महत्त्व की बात तो यह है कि उसके शब्दों का उस पर और सामने वाले पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। 

     यहाँ एक मुलभुत बात बताई जा रही है - हम शब्दों और वाक्यों में नहीं सोंचते है।  हम तस्वीरों और बिंबों में सोचते है।  शब्द विचारों के लिए कच्चा माल है।  जब इन्हें बोला जाता है या पढ़ा जाता है तो हमारा दिमाग़ी कंप्यूटर इन शब्दों को अपने आप तस्वीरों में बदल लेता है।  हर शब्द, हर वाक्य, आपके दिमाग़ में अलग़ तस्वीर बनाता है।  अगर कोई यह कहता है, "जिम ने एक नया स्पलिट-लेवल ख़रीदा है," तो हमारे दिमाग़ में एक अलग तस्वीर बनती है।  परन्तु अगर आपको बताया जाता है, "जिम ने एक रैंच हाउस ख़रीदा है" तो आपके दिमाग में दूसरी ही तस्वीर बनती है।  हमारे दिमाग़ में अलग़-अलग़ तस्वीरें अलग़-अलग शब्दों की वज़ह से बनती है। 

     इसे इस तरीक़े से देखें।  जब आप बोलते है या लिखते है तो आप एक तरह से दूसरे लोगों के दिमाग़ में फिल्में दिखने वाले प्रोजेक्टर का काम कर रहे है।  और आप जिस तरह की फ़िल्म दिखाएँगे, सामने वाले पर आपका प्रभाव वैसा ही पड़ेगा। 

     मान लीजिए आप लोगों को यह बताते है, "मुझे यह बताते हुए दुःख हो रहा है कि हम असफ़ल हो गए है।"  इस वाक्य का उन लोगों पर क्या असर होगा? वे लोग इन शब्दों में हार और निशाना और दुःख के चित्र देखेंगे, जो "असफ़ल" शब्द में छुपे हुए है।  इसके बजाय अगर आप कहते है, "यह रहा एक नया उपाय, जिसमे हम असफ़ल हो सकते है," तो इससे उनका उत्साह बढ़ जाएगा और वे एक बार फिर कोशिश करने के लिए तैयार हो जाएँगे। 

     मान लीजिए आप कहते है, "हमारे सामने एक समस्या है।"  ऐसा कहने पर दूसरों के दिमाग़ में आप एक ऐसी तस्वीर बना देंगे जो सुलझाने में मुश्किल और अप्रिय होगी।  इसके बजाय यह कहे, "हमारे सामने एक चुनौती है।"  और इस वाक्य से आप एक ऐसी मानसिक तस्वीर बना देते है जिसमें आनंद है, खेल, करने के लिए कुछ अच्छा है। 

     या किसी समूह से कहे, "हमने काफ़ी बड़ा खर्च कर डाला।"  और लोगों को लगता है कि ख़र्च हुआ पैसा कभी वापस नहीं लौटेगा।  निष्चित रूप से यह नकारात्मक वाक्य है।  इसके बजाय यह कहे, "हमने काफ़ी बड़ा निवेश किया है," और लोग एक ऐसी तस्वीर बना लेंगे जिसमें बाद में लाभ लौटता हुआ दिखता है, और यह एक बहुत सुखद दॄश्य होता है।

     मुददे की बात यह है -  बड़े चिंतको में अपने और दूसरों के मस्तिष्क में सकारात्मक, प्रगतिशील और आशावादी तस्वीरें बनाने की कला होती है।  बड़ी सोच के लिए हमें ऐसे शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए जो बड़े, सकारात्मक मानसिक चित्र प्रदान कर सके। 

     पढ़ते समय खुद से पूछे, "मै किस तरह के मानसिक चित्र देख रहा हु ?"
नकारात्मक विचार -
1. इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा, हम कर चुके है। 

2. मैंने पहले भी यह बिज़नेस किया था और मै इसमें असफ़ल हो गया था।  मै अब दुबारा भूलकर भी कोशिश नहीं करूँगा। 

3. मैंने कोशिश करके देखा है, परन्तु यह माल बिकता ही नही है।  लोग इसे नही खरीदना चाहते। 

4. बाज़ार माल से अटा पड़ा है।  सोचिए, ७५% संभावित माल तो पहले ही बिक चूका है।  बेहतर है कि इससे बाहर निकल आऊ। 

5. उनके आर्डर छोटे होते है।  मै अब उनके पास नही जाऊँगा।
 सकारात्मक विचार -
1. हम अभी हारे नहीं है।  हम कोशिश करते रहेंगे।  यह रहा एक नया उपाय जिससे हम सफल हो सकते है। 

2. मै एक बार इसमें जरूर असफ़ल हुआ था, परंतु उसमे गलती मेरी ही थी अब मै एक बार फीर कोशिश करके देखूँगा और उस गलती को नही दोहराऊँगा।

3. अब तक मै यह माल नही बेच पाया हु।  परन्तु मै जानता हु कि यह अच्छा है और मै ऐसा फार्मूला ढूँढ ही लूंगा जिससे यह धड़ाधड़ बिकने लगे। 

4. सोचिए, २५% बाज़ार तो खुला पड़ा है।  मै बिलकुल कोशिश करूँगा।  यह बहुत बड़ा अवसर है।  

5. उनके आर्डर अब तक छोटे है।  मै ऐसी योजना बनाता हु जिसमे वे मुझसे और ज्यादा माल खरीदें। 


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10 March 2015

Lord Gautam Buddha Quotes in Hindi



                                                             - जीवन परिचय -

Born/जन्म      -  c. 563 BCE or c. 480 BCE, लुम्बिनी / Lumbini 
Died / मृत्यु     - c. 483 BCE or c. 400 BCE (aged 80), कुशीनगर / kushinagar
Founder          -  Buddhism ( बौद्ध धर्म )

                                              - भगवान बुद्ध के अनमोल विचार -

1. मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है।  सभी धर्म ( अच्छा या बुरा ) मन से ही उत्पन्न होते है।  यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख होता है।  दुःख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार बैलगाड़ी का पहिया बैल के खुर के निशान का पीछा करता है। 

2. मन सभी धर्मो का प्रधान है।  पुण्य और पाप सभी धर्म से ही उत्पन्न होते है।  यदि कोई प्रसन्न मन से कुछ कहता है या कुछ करता है तो उसका फ़ल सुख होता है।  सुख उसका पीछा उसी प्रकार नही छोड़ता जिस प्रकार मनुष्य की छाया उसका कभी साथ नही छोड़ती। 

3. उसने मुझे मारा, उसने मुझे हराया, उसने मुझे गाली दी, उसने मेरा बुरा किया - जो इन बातों को जीवन में याद रखते है उनके जीवन से वैर का अंत नही होता। 

4. उसने मुझे मारा, उसने मुझे हराया, उसने मुझे गाली दी, उसने मेरा बुरा किया - जो इन बातों को जीवन में याद नहीं रखते है उनके जीवन से वैर का अंत हो जाता है।   

5. घृणा का अंत घृणा से नही होता।  घृणा का अंत होता है प्रेम, दया, करुणा और मैत्री से। 

6. मूर्ख लोग नहीं समझते कि उन्हें एक न एक दिन संसार से जाना ही होगा।  जो इस बात को समझते है उनके कलह शांत हो जाता है। 

7. जो व्यक्ति काम भोग में लीन रहता है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन नही है, जिसे भोजन की सही मात्र का ज्ञान नही है, जो आलसी है और परिश्रम नही करता, मार उसे उसी प्रकार गिरा देता है जैसे वायु एक दुर्बल वृक्ष को गिरा देती है। 

8. जो व्यक्ति काम भोग में लीन नही रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन है, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान है, जो आलसी नही है, मार उसे उसी प्रकार हिला नही सकता जैसे वायु एक चट्टान का कुछ बिगड़ नही पाती। 

9. जिसने अपने मन को स्वच्छ नहीं किया है और काषाय वस्त्र धारण करता है, सत्य और संयम हैं ऐसा व्यक्ति, काषाय-वस्त्र धारण करने का अधिकारी नहीं है। 

10. जिसने अपने मन को स्वच्छ कर दिया है और तब वह काषाय वस्त्र धारण करता है, सत्य और संयम युक्त ऐसा व्यक्ति काषाय वस्त्र धारण करने का अधिकारी है। 

11. जो सार को नि:सार और नि:सार को सार समझता है ऐसे गलत चिंतन वाले व्यक्ति को सार प्राप्त नही होता। 

12. जो सार को सार और नि:सार को निःसार समझता है ऐसे शुद्ध चिंतन वाले व्यक्ति को सार प्राप्त हो जाता है। 

13. जैसे यदि घर की छत ठीक न हो तो उसमें वर्षा का पानी घुस जाता है, उसी प्रकार असंयमित मन में राग घुस जाता है। 

14. जैसे यदि घर की छत ठीक हो तो उसमें वर्षा का पानी नही घुस पाता, उसी प्रकार संयमित मन में राग नही घुस सकता। 

15. वह इस लोक में शोक करता है या मरणोपरान्त परलोक में शोक करता है।  पापी दोनों जगह शोक करता है।  वह अपने कर्मों के पाप फल को देखकर शोक ग्रस्त या पीड़ित होता है। 

16. वह इस लोक में प्रसन्न होता है या मरणोपरान्त परलोक में प्रसन्न होता है।  पुण्य करने वाला व्यक्ति दोनों जगह प्रसन्न होता है।  वह अपने कर्मों का पवित्र फ़ल देखकर मुदित होता है, आनंदित होता है। 

17. पापी इस लोक में संतप्त होता है या प्राणान्त के बाद परलोक में भी संतप्त होता है।  इस प्रकार पाप करने वाला दोनों जगह ही संतप्त होता है।  "मैंने पाप किया है" यह सोचकर संतप्त होता है और दुर्गति प्राप्त कर और भी अधिक संतप्त होता है। 

18. पुण्य करने वाला इस लोक में आनंदित होता है या प्राणान्त के बाद परलोक में भी आनंदित होता है।  इस प्रकार पुण्य करने वाला दोनों ही जगह आनंदित होता है।  "मैंने पुण्य किया है" यह सोचकर आनंदित होता है और सद्गति प्राप्त कर के और भी आनंदित होता है।

 19. ग्रंथो का कितना भी पाठ करे लेकिन प्रमाद के कारण उन धर्म-ग्रंथो के अनुसार आचरण न करे तो दुसरो की गायें गिनने वाले की तरह वह श्रमणत्व का अधिकारी नही होता है। 

20. ग्रंथो का थोड़ा ही पाठ करे लेकिन राग, द्वेष, मोह रहित होकर धर्म के अनुसार आचरण करे तो ऐसा बुद्धिमान, अनासक्त, भोगों के पीछे न दौड़ने वाला व्यक्ति श्रमणत्व का अधिकारी होता है।  

निवेदन :-
कृपया comments के माध्यम से बताएं कि Lord Buddha Quotes का हिंदी अनुवाद आपको कैसा लगा।

7 March 2015

अपने प्राइम टाइम में काम करें



     टेलिविजन पर प्राइम टाइम में - यानि रात आठ बजे से दस बजे तक - विज्ञापन की किंमत सबसे ज्यादा होती है।  विज्ञापन उतने समय का रहता है परन्तु इसकी किंमत बढ़ जाती है।  किंमत बढ़ने का कारण सिर्फ़ यह होता है कि वह विज्ञापन प्राइम टाइम में प्रसारित किया जाता है, जिसमे इसे ज्यादा दर्शकों द्वारा देखा जाता है।

     टेलीविज़न के प्राइम टाइम की अवधारणा से हम यह सीख सकते है कि हमारे-आपके लिए भी दिन के चौबिसौ घंटे एक से नही होते।  दिन के किसी खास समय आपकी ऊर्जा, विचार-शक्ति, उत्साह और कार्यक्षमता बाकि समय की तुलना में अधिक होती है।  यही आपका प्राइम टाइम है।  ज्यादातर लोगों के लिए सुबह का समय प्राइम टाइम होता है, जब वे बड़े-बड़े काम चुटकियों में कर सकते है।  परन्तु ध्यान रहे, हर व्यक्ति का प्राइम टाइम अलग-अलग़ होता है।  कई लोगों के लिए रात का समय प्राइम टाइम हो सकता है और कइयों के लिए दोपहर का।  आपका प्राइम टाइम चाहे सुबह का हो या रात का, महत्त्वपूर्ण बात इसे पहचानना है।

     आपका प्राइम टाइम कोन सा है, यह पहचानना इसलिए जरुरी है, ताकि आप अपने समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग कर सकें।  अपने सबसे महत्त्वपूर्ण या रचनात्मक काम इसी दौरान करे, ताकि वे अच्छी तरह से और जल्दी हो सके।  अपने प्राइम टाइम में छुटपुट काम करके उसे बर्बाद न करे, क्योंकि छुटपुट काम तो आप बाकि के समय में भी कर सकते है।

     यदि आप सुबह के समय ज्यादा फुर्तीले, ऊर्जावान और चुस्त होते है, यानि सुबह का वक़्त आपका प्राइम टाइम है, तो आप एक तरह से सौभाग्यशाली है।  अगर आप दोपहर में एक झपकी ले लीजिए, तो आप एक दिन में दो सुबहें प्राप्त कर सकते है।  दोपहर की झपकी के बाद आप लगभग उतने ही फुर्तीले, ऊर्जावान और चुस्त हो सकते है, जितने की सुबह थे।

     अक्सर इस बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है कि समय की मात्र और गुणवत्ता में कोई सीधा संबंध नही होता।  कई बार तो एक घंटे में ही इतना कुछ हो जाता है, जो आम तौर पर एक दिन में नही हो पता।  याद रखे, समय की मात्र के बजाय उसकी सघनता और गुणवत्ता ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।  काम के लंबे घंटे महत्त्वपूर्ण नही है, महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे ठोस और सघन हो।  इसी को अंग्रेजी में क्वालिटी टाइम कहा जाता है।

     ध्यान रखिए, वह व्यक्ति ज्यादा सफल नही होता, जो दिन में आठ घंटे काम करने का लक्ष्य बनता है - ज्यादा सफल तो वह व्यक्ति होता है, जो दिन में आठ या नौ काम करने का लक्ष बनता है।  दोनों में फर्क इतना है कि पाहला व्यक्ति समय की मात्र को महत्त्व देता है और दूसरा समय की गुणवत्ता को और इसी से उनकी सफलता में जबरदस्त फर्क पड़ता है।


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5 March 2015

टालमटोल न करें



     हम सभी कभी न कभी टालमटोल करते है।  आज के काम को कल पर टाल देते है।  कारण यह होता है है कि कभी हमारा मूड नही होता, तो कभी काम मुश्किल लगता है।  लेकिन यह याद रखे कि टालमटोल समय प्रबंधन की दॄष्टि से खतरनाक है।  इसका एक नुकसान तो यह है कि आप कल के समय को गिरवी रख देते है।  जिस काम को आप आज ही निबटा सकते है, उसे कल पर टाल देने से आप कल के बोझ को और ज्यादा बढ़ा देते है।  आज का काम आज ही पूरा करे, ताकि आने वाले कल पर बोझ न पड़े।  संभव हो, तो आने वाले कल के काम कुछ काम भी आज ही निबटा लें, ताकि कल के दिन आप पर दबाव कम हो जाए और आप उसमे नए काम कर लीजिए। 

     अब आप यह समझ लीजिए कि हम टालमटोल क्यों करते है।  इसके बहुत से कारण होते है - या तो काम boaring या मुश्किल होता है, या उसकी कोई समय सीमा नही होती, या उसका लक्ष्य स्पष्ट नही होता, या आपको वह काम इतना बड़ा नज़र आता है कि आपको समझ ही नही आता कि कहाँ से शुरू करे।  इसके अलावा, कई बार तो हम इसलिए टालमटोल करते है, क्योंकि हमारे पास पूरी जानकारी नहीं होती और हम सोंचते है कि पूरी जानकारी के बगैर काम नही हो सकता।  सौ बात की एक बात, टालमटोल का कारण चाहे जो हो, उसे दूर करे और आज के काम को आज ही पूरा करने की आदत डालें।  यह भी न भूलें कि बुलंद इरादों से हर समस्या विकराल लग सकती है।  मुख्य सवाल तो यह है कि आपका इरादा कितना बुलंद है। 
 
     टालमटोल का सबसे आम कारण यही होता है कि किसी काम को करने का हमारा मुड नही होता।  देखिए, यह बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि अच्छा काम करने का मूड कभी नहीं होगा।  मन चंचल है और अगर सदियों से इसे वश में रखने को कहा गया है, तो उसके पीछे कोई अच्छा कारण होगा।  मन कभी भी अच्छी चीजों की ओर नहीं जाता है, क्योंकि उनके लिए अनुशासन और श्रम की जरुरत होती है।  यह तो हमेशा क्षणिक सुख और आनंद के पीछे भागता है।  सुन्दर लड़कियों के साथ बातें करने का तो आपका मुड़ हमेशा रहता है, लेकिन आस्तीन चढ़ाकर और कमर कसकर मेहनत करने का आपका मन कभी नही होता।  मन मेहनत से घबरता है, इसलिए अगर आप जीवन में कुछ करना चाहते है, तो मन या मूड के गुलाम मत रहिए।  मन को अनुशासित करिए और मूड हो या ना हो, काम शुरू कर दीजिए। 
 
     टालमटोल करने का एक रूप काम को अधूरा छोड़ना भी है।  आप किसी काम को अधूरा छोड़ देते है और यह सोचते है कि उसे कल पूरा कर लेंगे।  जब कल आता है, तो आपको यह याद करना पड़ता है कि आपने उस काम को किस मोड़ पर छोड़ा था, आपका लक्ष्य क्या था और आप उसे कैसे पूरा करने वाले थे।  इस चक्कर में आपका बहुत सा समय बर्बाद हो जाता है।  इसके अलावा, हो सकता है की अगले दिन आपको उस काम को पूरा करने की फुरसत ही ना मिले।  इसलिए हमेशा काम पूरा करके ही उठिए।  अगर काम बड़ा हो, तो उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में बाट लीजिए और सिर्फ एक हिस्से को ही पूरा करने की योजना बनाइए।  टालमटोल करना एक लोकप्रिय बहाना है और जैसे कि एक कहावत है, "कल सप्ताह का सबसे व्यस्त दिन होता है।"

कुछ लोगों के पास हज़ारो कारण होते है कि वे अपना मनचाहा काम क्यों नही कर सकते, जबकि उन्हें तो बस एक कारण की जरुरत होती है कि वे उसे क्यों कर सकते है। 
                                        - विलिस आर. व्हिटनी

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2 March 2015

काम सौंपना सीखें


     कोई भी इंसान सब कुछ नही कर सकता।  बरहाल, कोई लोग हर काम खुद करने की कोशिश करते है।  और जाहिर है, वे असफ़ल होते है। 

     हर व्यक्ति यह चाहता है कि अपने महत्त्वपूर्ण काम वह खुद करे, लेकिन एक निशचित ऊँचाई पर पहुचने के बाद प्रगति करने के लिए दुसरो को काम सौंपना अनिवार्य हो जाता है।  बिज़नेस की शुरुवात में तो व्यक्ति सारे काम खुद कर सकता है, परन्तु बिज़नेस बढ़ने के बाद काम इतने बढ़ जाते है कि सहयोगियों के बिना तरक्की नही हो सकती।  ऐसे में अगर वह सही सहयोगी खोजकर उन्हें काम सौंपना ( delegation ) सीख लीजिए, तो वह आगे भी प्रगती कर सकता है।  अगर वह यह नही सीख पाता, तो भविष्य में उसकी प्रगति की संभावना कम हो जाती है। 

     दूसरों को महत्त्वपूर्ण काम सौंपना आसान नहीं होता।  दूसरों की योग्यता, बुद्धि, क्षमता और निष्ठा पर भरोसा करना आसान नही होता।  लेकिन बड़ी सफ़लता हासिल करने के लिए ऐसा करना जरुरी होता है।  इसके बाद ही सच्ची प्रगति संभव है, क्योंकि अब आप अकेले नही है।  अब आपके पास एक टीम है, जिसकी वजह से आपका समय कई गुना बढ़ जाता है और आप उसका सदुपयोग करके ज्यादा तेज़ी से अपनी मंज़िल पर पहुंच सकते है। 

     ज्यादा तर लोगों के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि वे हर काम खुद करने की कोशिश करते है।  वे दूसरों काम सौंपना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है, ' मैं इसे ज्यादा अच्छी तरह से कर सकता हु।'  उन्हें यह समझ में नही आता है कि बड़ी सफ़लता पाने के लिए उन्हें दूसरों को काम सौंपना ही होगा, चाहे उन्हें यह पसंद हो या न हो।  प्रगती के राह में एक ऐसा मोड़ आता है, जहाँ भविष्य में प्रगती करने के लिए दूसरों को काम सौंपना ही जरूरी हो जाता है।  इसलिए बेहतर होगा कि आप काम सौंपने की कला सीख लीजिए। 

     काम सौंपने के लिए आपको सिर्फ़ इतना करना है कि आप किसी सही व्यक्ति को खोजकर उसे काम सौंप दे।  यानी कि ऐसा व्यक्ति चुनें, जिसमें उस काम को अच्छी तरह से करने की क्षमता और इच्छा हो।  फिर उसे बता दे कि उसे क्या करना है, कैसे करना है और कब करना है।  इसके बाद आप सौंपे गए काम और उसके पूर्ण होने की तारीख को अपनी डायरी में लिख लीजिए।  delegation ( डेलिगेशन ) या काम सौंपने का तरीक़ा इतना ही आसान है। 

     सौंपे गए काम की प्रगती की निगरानी ( देखभाल ) करना अच्छी बात है, लेकिन यह भी ध्यान रखे कि ज्यादा निगरानी में आपका समय बर्बाद होता है और सामने वाले को बुरा भी लग सकता है कि आप उसकी क्षमता या योग्यता पर भरोसा नही कर रहे है। 

     काम सौंपने की कला में निपुण होने के लिए सिर्फ़ दो चीज़ों की जरूरत है - यह पता लगाना कि कौन से काम सौपे जा सकते है और किसे।  बस इतनी सावधानी बरतें कि अत्यंत महत्त्वपूर्ण काम दूसरों को सौंपने के बजाय खुद करें।  

              आमिर लोग समय में निवेश करते है, गरीब लोग धन में निवेश करते है। 
                                                - वॉरेन बफ़ेट

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