22 April 2015

इन चार उपायों से बड़े चिंतक की शब्दावली विकसित करें


यहाँ चार तरीक़े दिए जा रहे है, जिनकी मदत से आप बड़े चिंतक की शब्दावली विकसित कर सकते है। 

     1. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए बड़े, सकारात्मक, आशावादी शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करें।  जब कोई आपसे पूछता है, "आप आज कैसा महसूस कर रहे है?" और आप उसे जवाब देते है, "मै थका हुआ हुँ ( मुझे सिरदर्द है, काश कि आज शनिवार होता, मेरा आज बहुत बुरा हाल है )" तो आप अपनी स्थिति को अपने ही हाथों ख़राब कर रहे है।  इसका अभ्यास करें :- यह एक बहुत आसान बात है, परंतु इसमें बहुत शक्ति है।  जब भी कोई आपसे पूछे, "आप कैसे है ?" या "आप आज कैसा महसूस कर रहे है ?" तो जवाब में हमेशा कहें, "बहुत बढ़िया! धन्यवाद और आप कैसे है ?"  या कहे "बेहतरीन" या "शानदार"।  हर मौक़े पर कहें कि आप बढ़िया महसूस कर रहे है और आप सचमुच बढ़िया महसूस करने लगेंगे और ज्यादा बड़ा भी।  एक ऐसे व्यक्ति बनें जो हमेशा बढ़िया महसूस करता है।  इससे दोस्त बनते है। 

     2. दूसरे लोगों का वर्णन करते समय चमकीले, खुशनुमा, सकारात्मक शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करें।  यह नियम बना लें कि आप अपने सभी दोस्तों और सहयोगियों के लिए बड़े, सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करेंगे।  जब आप किसी के साथ किसी तीसरे अनुपस्थित व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हो, तो आप उसकी बड़े शब्दों में प्रशंसा करे, "हाँ, वह बढ़िया आदमी है।"  "लोग कहते है उसका काम बहुत बढ़िया है।"  इस बात का बहुत ध्यान रखें कि आप उसकी बुराई न करें या घटिया भाषा का इस्तेमाल न करें।  देर सबेर तीसरे व्यक्ति को पता चल जाता है कि आपने क्या कहा था, और आपने जो बुराई की थी, वह आपको ही बुरा बना सकती है। 

     3. दूसरों का उत्साह बढ़ाने के लिए सकारात्मक भाषा का प्रयोग करें।  हर मौक़े पर लोगों की तारीफ़ करें।  अपनी पत्नी या पति की हर रोज़ तारीफ़ करें।  अपने साथ काम करने वालों की रोज़ तारीफ़ करें।  अगर सच्ची तारीफ़ की जाए, तो यह सफ़लता का औज़ार बन जाती है।  इसका प्रयोग करे! इसका प्रयोग बार-बार, हर बात करें।  लोगों के हुलिए, उनके काम, उनकी उपलब्धियों, उनके परिवार की तारीफ़ करें। 

     4. दूसरों के सामने योजना प्रस्तुत करते समय सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें।  जब लोग इस तरह की बात सुनते है - "मै आपको एक अच्छी खबर सुनाना चाहता हुँ।  हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है..." तो उनके दिमाग़ में आशा जाग जाती है।  परंतु जब वे इस तरह की कोई बात सुनते है, "चाहे आप इसे पसंद करें या न करें, हमें यह काम करना है,"  तो दिमाग़ की बोझिल, बोअरिंग हो जाती वे भी इसी तरह के हो जाते है।  जीत का वादा करें और उनकी आँखों में चमक आ जाएगी।  जीत का वादा करें और आपको समर्थन हासिल हो जाएगा।  महल बनाएं, क़ब्र न खोदें!  

15 April 2015

अपने सच्चे आकार को नापें और जानें कि आप कितने योग्य है


     अब अगर इतने सरे लोगों की सोंच इतनी छोटी है, तो इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप सचमुच बड़ा सोचते है तो आपके सामने बहुत कम प्रतियोगिता है और आपके लिए एक बहुत बड़े करियर का रास्ता खुला है। 

     सफलता के मामले में लोगों को इंच या पौंड के हिसाब से नही नापा जाता, न ही उन्हें कॉलेज की डिग्री यों से या पारिवारिक पृष्ठ भूमि के पैमाने से नापा जाता है, उन्हें तो उनकी सोच के आकार से नापा जाता है।  आप कितना बड़ा सोंचते है, यही आपकी उपलब्धियों के आकार को तय करता है।  देखते है कि हम किस तरह अपनी सोच को बड़ा कर सकते है। 

     कभी आपने खुद से पूछकर देखा है, "मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या है ?"  शायद इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है - यानि की खुद को सस्ते में बेचने की कमजोरी।  आत्म-मूल्यांकन में कमी अनगिनत तरीकों से साफ़ दिखती है।  जॉन अख़बार में एक नौकरी का विज्ञापन देखता है।  वह इसी तरह की नौकरी करना चाहता है।  परंतु वह इसके लिए कोई कोशिश नही करता क्योंकि वह सोचता है, "मै इस नौकरी के लिए पर्याप्त योग्य नहीं हूँ, इसलिए कोशिश करने की मेहनत क्यों करुँ ?"  या जिम जोन के साथ डेटिंग पर जाना चाहता है, परंतु वह उससे नहीं पूछता क्योंकि उसे लगता है कि वह तैयार नही होगी। 

     टॉम को लगता है कि मिस्टर रिचर्ड्स उसके माल के अच्छे ग्राहक हो सकते है, परंतु टॉम मिस्टर रिचर्ड्स जैसे बड़े आदमी उससे नहीं मिलेंगे।  पीट नौकरी का आवेदन भर रहा है।  उसमे एक प्रशन पूछा जाता है, "आप शुरुवात में कितनी तनख़्वाह चाहेंगे?"  पीट एक छोटी-सी रक़म लिख देता है क्योंकि उसे लगता है कि वह इससे ज्यादा तनख़्वाह के योग्य नही है, जबकि वह इससे ज्यादा तनख़्वाह पाना चाहता है। 

     हज़ारों सालों से दार्शनिक हम यह अच्छी सलाह देते आ रहे है - खुद को जाने।  परंतु ज्यादातर लोग इस सलाह का मतलब यह निकालते है कि खुद को नकारात्मक पहलू को जाने।  ज्यादातर आत्म-मूल्यांकनों में लोग अपनी गलतियों, कमियों, अयोग्यताओं की लंबी सी मानसिक सूची बना लेते है। 

     हमें अपनी कमियाँ पता हो, अच्छी बात है।  इनसे हमें यह पता चलता है कि हमें इन क्षेत्र में सुधार करना है।  परंतु अगर हम सिर्फ़ अपने नकारात्मक पहलू को ही जान पाए तो हम परेशानी में फँस जाएँगे।  हमारा मूल्य अपनी नज़रों में कम हो जाएगा। 

     यह एक अभ्यास दिया गया है जिससे आप अपने सच्चे आकार को नाप सकते है।  मैंने इसे एक्जीक्यूटिव्ज और सेल्स पर्सनल्स के अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आज़ माया है।  यह वाक़ई काम करता है। 

     1. अपने पाँच प्रमुख गुणों को तय करें।  किसी निष्पक्ष दोस्त की मदत लें - जैसे आपकी पत्नी, आपका सीनियर, आपका प्रोफ़ेसर - कोई समझदार व्यक्ति जो आपको सच्ची राय दे सके।  ( गुणों के उदाहरण है शिक्षा, अनुभव, तकनीकी योग्यता, हुलिया, संतुलन घरेलू जीवन, रवैया, व्यक्तित्व, लीडरशिप की योग्यता )।

     2. हर गुण के सामने अपने उन तीन परिचित व्यक्तियों के नाम लिख लें हो बेहद सफ़ल है परंतु उनमें यह गुण उतनी मात्र में नही है, जितनी मात्र में यह आपमें है।
     इस अभ्यास को पूरा कर लेने पर आप पाएँगे कि आप किसी न किसी बात में कई सफ़ल लोगों से आगे है।

     ईमानदारी से आप एक ही निष्कर्ष पर पहुँच सकते है - आप जितना सोचते है, आप उससे बड़े है।  इसलिए, आप अपनी सोच को भी अपने साली आकार के हिसाब से बना लें।  उतना ही बड़ा सोचें जितने बड़े आप है! और कभी, खुद को सस्ते में न बेचें!

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11 April 2015

विशवासपूर्ण काम करके विशवासपूर्ण सोंच विकसित करें


      यहाँ एक मनो वैज्ञानिक सिद्धांत दिया जा रहा है जो 25 बार पढ़ने लायक है।  इसे तब तक पढ़ते रहे, जब तक कि यह आपके दिमाग़ में पूरी तरह से न घुस जाए :- विशवास पूर्ण चिंतन के लिए विशवास पूर्ण काम करें। 

     महान वैज्ञानिक डॉ. जॉर्ज. क्रेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अप्लाइड साइकलॉजी ( शिकागो :- हॉप किन्स सिंडिकेट, इन्क 1950 )  में लिखा है, "याद रखें, काम ही भावनाओं के अग्रज होते है।  हम अपनी भावनाओं को तो सीधे नियंत्रित नहीं कर सकते।  परंतु हम अपने कामों को नियंत्रित करके अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते है।  वैवाहिक समस्याओं और ग़लत फहमियो को दूर करने के लिए सच्चे मनो वैज्ञानिक तथ्यों को जानें।  हर दिन सही काम करें और जल्दी ही आप में सही भावनाएँ जाग जाएगी!

     मनो वैज्ञानिक के अनुसार शारीरिक गतिविधियों में बदलाव करके हम अपने रवैए को बदल सकते है।  उदाहरण के तौर पर, आप अगर मुस्कराने की क्रिया करते है, तो आप सचमुच मुस्कराने के मूड में आ जाएंगे।  जब आप अपने शरीर को झुकाने के बजाय तान लेते है तो आप ज्यादा सुपीरियर महसूस करने लगते है।  इसके उलट अगर, त्यौरियां चढ़ाकर देखें तो पाएँगे कि आप त्यौरियां चढ़ाने के मूड़ में आ गए है। 

     यह सिद्ध करना तो आसान है कि अपनी क्रियाओं पर काबू करके आप अपनी भावनाओं को बदल सकते है।  जो लोग अपना परिचय देने में संकोच करते है, वे अपने संकोच को आत्म विशवास में बदल सकते है अगर वे सिर्फ कुछ सामान्य क्रियाएँ करे - पहली बात तो यह कि सामने वाले से गर्मजोशी से हाथ मिलाए।  इसके बाद, सामने वाले व्यक्ति की तरफ एकल सीधे देखें।  और तीसरी बात, सामने वाले से कहें, "मुझे आपसे मिलकर ख़ुशी हुई।"

     इन तीन साधारण क्रियाओं से आपका संकोच अपने आप और तत्काल दूर हो जाएगा।  आत्म विशवास से भरी क्रिया की वजह से आप में अपने आप आत्म विशवास आ जाएगा। 

     आत्मविशवासपूर्ण चिंतन करने के लिए आत्मविशवास की क्रियाएँ करें।  जिस तरह की भावनाएँ आप स्वयं में जगाना चाहते है, उस तरह के काम करें।  नीचे आत्मविशवास बढ़ाने के लिए पॉँच अभ्यास दिए है।  इन्हें ध्यान से पढ़े।  फिर इनका अभ्यास करने की पूरी कोशिश करें और आप अपना आत्मविशवास काफ़ी बढ़ा-चढ़ा पाएँगे। 

     1. आगे की बेंच पर बैठे।  कभी आपने मीटिंग या चर्च या क्लास रूम या किसी और तरह की सभा में इस बात पर गौर किया की पीछे की सीटें सबसे पहले भर जाती है ? ज्यादातर लोग पीछे की लाइन में इसलिए बैठते है ताकि वे "लोगों की नज़रों में न आए"।  और वे लोगों की नज़रों में आने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उनमें आत्मविशवास नहीं आता। 

     2. नज़रें मिलाकर बात करने का अभ्यास करें।  कोई व्यक्ति किस तरह अपनी आँखों का प्रयोग करता है, इससे भी हमें उसके बारे में काफ़ी जानकारी मिल सकती है।  अगर कोई आपकी आँखों में सीधे नहीं देखता है, तो आपके मन में यह सवाल तत्काल आ जाता है, "यह व्यक्ति क्या छुपाने की कोशिश कर रहा है ? यह व्यक्ति किस बात से डरा हुआ है ? क्या यह मुझे धोका देना चाहता है ? इस व्यक्ति के इरादे क्या है ?"

     3. 25% तेज़ चले।  आत्मविशवास बढ़ाने के लिए 25% तेज़ चलने की तकनीक का प्रयोग करके देखें।  अपने कंधो को सीधा कर लें, अपने सर को ऊपर उठा लें, और थोड़े तेज़ कदमों से आगे की तरफ़ बढे चलें।  आप पाएँगे कि  आपका आत्मविशवास भी बढ़ चूका है। 

     कोशिश करें और परिणाम खुद देखें। 

     4. बोलने की आदत डालें। कई तरह के समूह के साथ काम करते हुए मैंने यह पाया है कि बहुत से समझदार और योग्य लोग चर्चाओं में भाग नही लेते है।  चर्चा के दौरान उनका मुँह ही नही खुल पता।  ऐसा नही है कि उनके पास बाकि लोगों जितने अच्छे विचार नही होते या वे बोल नही सकते।  इसका कारण सिर्फ़ यह होता है कि उनमे आत्मविशवास नहीं होता। 

     5. बड़ी मुस्कराहट दें।  ज्यादा लोगों का कहना है कि मुस्कराहट से उन्हें सच्ची ताक़त मिलती है।  उन्हें बताया गया है कि मुस्कराहट आत्मविशवास की कमी को दूर करने के लिए एक बढ़िया दवा है।  परंतु ज्यादातर लोग इस बात में इसलिए यक़ीन नहीं करते, क्योंकि जब वे डरे होते है तो वे मुस्कराने की कोशिश ही नही करते। 
     यह छोटा-सा पयोग करके देखें।  आप पराजित अनुभव करें और बड़ी मुस्कराहट दे - एक साथ, एक ही समय में यह संभव नही है।  आप ऐसा कर ही नही सकते।  बड़ी मुस्कराहट आपको आत्मविशवास देती है।  बड़ी मुस्कराहट आपका दर भगाती है, चिंता दूर करती है और निराशा हर लेती है। 

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10 April 2015

अपनी अंतरात्मा के हिसाब से काम करके आत्म-विशवास बढ़ाएँ


     हम में से हर एक व्यक्ति में सही होने, सही सोचने और सही काम करने की इच्छा होती है।  जब हम इस इच्छा के विपरीत व्यवहार करते है तो हम अपनी अंतरात्मा में कैंसर की बीमारी आमंत्रित कर लेते है।  यह कैंसर बढ़ता है और हमारे आत्म विशवास को कम करता जाता है।  इसलिए इस तरह कोई काम न करें, जिसे करने के बाद आपको यह दर सताने लगे, "क्या मै पकड़ा जाऊँगा ? क्या लोगों को इस बात का पता चल जाएगा ? क्या मै बचने में सफ़ल हो पाउँगा ?"

     धोखा देकर और अपना आत्मविशवास कम करके "अच्छे नंबर" लाने की यानी कि सफ़ल होने की कोशिश कभी न करें। 

     मुझे यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि पॉल को सीख मिल गयी।  उसने सही काम करने का व्यावहारिक मूल्य समझ लिया।  मैंने सुझाव दिया कि वह बैठ जाए और एक बार फिर परीक्षा दे।  उसने मुझसे सवाल किया, "परंतु क्या आप मुझे कॉलेज से नहीं निकालेंगे ?"  मेरा जवाब था, "मै निष्कासन के नियम जनता हूँ।  परंतु, अगर हम धोखा देने वाले सारे विद्यार्थियों को कॉलेज से निकाल देंगे तो हमारे आधे प्रोफेसरों की छुट्टी हो जाएगी।  और अगर हम धोखा देने का विचार करने वाले सभी विद्यार्थियों को निकाल देंगे, तो हमें कॉलेज में ताले लगाने पड़ेंगे।"

     "इसलिए मै घटना को भूलने के लिए तैयार हू, अगर तुम एक काम करो।"

     "बिलकुल," उसने कहा। 

     मै उसे एक पुस्तक दी।  पुस्तक का नाम था fifty years with the golden rule. इसे देते हुए मैंने उससे कहा, "पॉल, इस पुस्तक को पढ़ो और बढ़ने के बाद इसे वापस कर देना।  जे. सी. पेनी के खुद के शब्दों में यह जाने कि किस तरह सही काम करने की वजह से वे अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्तियों के समूह में शामिल हो गए।" 

     सही काम करने से आपकी अंतरात्मा संतुष्ट रहती है।  और इससे आत्मविशवास भी बढ़ता है।  जब हम कोई गलत काम करते है, तो दो नकारात्मक बातें होती है।  पहली बात तो यह कि हम में अपराध बोध आ जाता है और इस अपराध बोध से हमारा आत्मविशवास कम हो जाता है।  दूसरी बात यह कि देर-सबेर दूसरे लोगों को हमारे ग़लत काम की जानकारी मिल जाती है और उनका हम पर से विशवास उठ जाता है। 

     सही काम करें और अपने आत्मविशवास को बनाए रखें।  यही चिंतन का कारगर तरीक़ा है। 

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9 April 2015

सेहत के बहानासाइटिस को हराने के चार सकारात्मक क़दमों का परयोग करें


सेहत के बहानासाइटिस के बचाव के सर्वश्रेष्ठ वैक्सीन के चार डोज़ है :-

     1. अपनी सेहत के बारे में बात न करें।  आप किसी बीमारी के बारे में जितनी ज्यादा बात करेंगे, चाहे वह साधारण सी सर्दी ही क्यों न हो, वह बीमारी उतनी ही बिगड़ती जाएगी।  बुरी सेहत के बारे में बाते करना काँटों को खाद-पानी देने की तरह है।  इसके अलावा, अपनी सेहत के बारे में बातें करते रहना एक बुरी आदत है।  इससे लोग बोर हो जाते है।  इससे आपको आत्म-केंद्रित और बुढ़िया की तरह बातें करने वाला समझा जा सकता है।  सफ़लता की चाह रखने वाले आदमी अपनी "बुरी" सेहत के बारे में चिंता नही करता।  अपनी बीमारी का रोना रोने से आपको थोड़ी सहानुभूति तो मिल सकती है, परन्तु जो आदमी हमेशा शिकायत करता रहता है, उसे कभी किसी का सम्मान, आदर या वफ़ादारी नहीं मिल सकते। 

     2. अपनी सेहत के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दे।  डॉ. वॉल्टर अल्वरेज़ विश्वप्रसिद्ध मेयो क्लीनिक में एमेरिटस कंसल्टेंट है।  उन्होंने हाल ही में लिखा है, "मै हमेशा फ़िजूल की चिंता करने वाले लोगों को ऐसा न करने की सलाह देता हूँ।  उदाहरण के तौर पर, मैंने एक आदमी को देखा जिसे इस बात का पूरा विशवास था कि उसका 'गाल ब्लैडर' ख़राब है, हालाँकि आठ बार अलग़-अलग क्लीनिकों में एक्स-रे कराने पर भी उसका गाल ब्लैडर पूरी तरह सही दिख रहा था और डॉक्टरों का कहना था कि यह सिर्फ़ उसके मन का वहम है और दरअसल उसे कोई बीमारी नहीं है।  मैंने उससे विनंती की वह अब तो मेहरबानी करके अपने गाल ब्लैडर का एक्स-रे कराना छोड़ दे।  मैंने सेहत का जरूरत से ज्यादा ध्यान रखने वाले सैकड़ो लोगों को बार-बार जबरन ई.सी.जी. कराते देखा है और मैंने उनसे भी यही विनंती की है कि वे अपनी बीमारी के बारे में फ़ालतू की चिंता करना छोड़ दें। 

     3. आपकी सेहत जैसी भी हो, आपको उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए।  एक पुरानी कहावत है, "मै अपने फटे हुए जूतों को लेकर दुःखी हो रहा था, परंतु जब मैंने बिना पैरों वाले आदमी को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही, इसके बजाय मै कृतज्ञ हो चला।"  इस बात पर शिकायत करने के बजाय कि आपकी सेहत में क्या "अच्छा नहीं" है, आपको इस बारे में खुश और कृतज्ञ होना चाहिए कि आपकी सेहत में क्या 'अच्छा' है।  अगर आप कृतज्ञ होंगे तो आप कई असली बीमारियों से भी बचे रहेंगे। 

     4. अपने आपको यह अक्सर याद दिलाए, "जंग लगने से बेहतर है घिस जाना।"  आपको जीवन मिला है आनंद लेने के लिए।  इसे बर्बाद न करें।  जिंदगी जीने के बजाय अगर आप चिंता करते रहेंगे, तो आप जल्दी ही किसी अस्पताल में भर्ती नज़र आएँगे। 

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8 April 2015

विशवास की शक्ती को विकसित करें


विशवास की शक्ति को प्राप्त करने और विशवास को दृढ़ बनाने के लिए तीन उपाय किए जा सकते है। 

     1.  सफ़लता की बात सोचें, असफ़लता की बात न सोचें।  नौकरी में, घर में, असफ़लता की जगह सफ़लता के बारे में सोचें।  जब आपके सामने कोई कठीन परिस्थिति आए, तो सोचें "मै जीत जाऊँगा," यह न सोचें "शायद मै हार जाऊँगा।"  जब आप किसी से प्रतियोगिता करें, तो सोचें, "मै उसके जितना योग्य नहीं हू।"  जब अवसर नज़र आए, तो सोचें "मै यह कर सकता हू," यह न सोचें "मै इसे नही कर सकता।"  अपनी चिंतन प्रक्रिया पर इस विचार को हावी हो जाने दें, "मै सफ़ल होकर दिखाऊँगा।"  सफ़लता के बारे में सोचने से आपका दिमाग़ ऐसी योजना बना लेता है जिससे आपको सफ़लता मिलती है।  असफ़लता के बारे में चिंतन करने से आपका दिमाग़ ऐसे विचार सोचता है, जिन से आपको असफ़लता हाथ लगती है। 

     2.  अपने आपको बार-बार याद दिलाए कि आप जितना समझते है, आप उससे कहीं बेहतर है।  सफ़ल लोग सुपरमैन नही होते।  सफ़लता के लिए सुपर-इंटेलेक्ट का होना जरूरी नही है।  न ही सफ़लता के लिए किसी जादुई शक्ति या रहस्य मयी तत्व की आवश्यकता होती है।  और सफलता का भाग्य से भी कोई संबंध नहीं होता।  सफ़ल लोग साधारण लोग ही होते है, पर ऐसे लोग होते है जिन्हें अपने आप पर विशवास है, अपनी क्षमताओं पर विशवास है और जो मानते है कि वे सफल हो सकते है।  कभी भी, हाँ, कभी भी, खुद को सस्ते में न बेचें। 

     3.  बड़ी सोंच में विशवास करें।  आपकी सफ़लता का आकार कितना बड़ा होगा, यह आपके विशवास के आकार से तय होगा।  अगर आपके लक्ष्य छोटे होंगे, तो आपकी उपलब्धिया भी छोटी होंगी।  अगर आपके लक्ष्य बड़े होंगे, तो आपकी सफलता भी बड़ी होगी।  एक बात कभी न भूले! बड़े विचार और बड़ी योजनाएं अक्सर छोटे विचारों और छोटी योजनाओं से आसान होते है। 

     जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के चेयरमैन राल्फ जे. कॉर्डिनेर ने लीडरशिप कॉन्फ्रेंस में कहा था, "… जो भी लीडर बनना चाहता है, उसे स्वयं के स्वयं की कंपनी के विकास की योजना बना लेनी चाहिए और इसका दॄढ़ निष्चय कर लेना चाहिए।  कोई भी किसी दूसरे व्यक्ति के विकास का आदेश नहीं दे सकता, कोई व्यक्ति दौड़ में आगे रहेगा या पीछे रह जाएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी तैयारी कैसी है।  यह ऐसी चीज़ है जिस में समय लगता है, मेहनत लगती है और इस में त्याग की आवश्यकता होती है।  आपके लिए यह कोई दूसरा नहीं कर सकता।"

     मिस्टर सार्डिनेर की सलाह में दम है और यह व्यावहारिक है।  इस पर चलें।  जो लोग बिज़नेस मैनेजमेंट, सेल्स लाइन, इंजीनिरिंग, धार्मिक संस्थाओं, लेखन, अभिनय और दूसरे क्षेत्रों में चोटी पर पहुँचते है वे निष्ठा और लगन के साथ आत्म-विकास की योजना पर चलकर ही वहाँ पहुँच पाए है। 

     किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम में - और यही इस वेबसाइट का लक्ष्य भी है - तिने बातें होनी चाहिए।  इसमें सामग्री होनी चाहिए - यानी क्या किया जाए।  दूसरी बात यह कि इसमें तरीक़ा होना चाहिए - यानी कैसे किया जाए।  और तीसरी बात यह की इसे एसिड टेस्ट में खरा उतरना चाहिए - यानी कि इससे परिणाम मिलना चाहिए।      

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1 April 2015

टी. वी. के संदर्भ में सावधान रहें


     T.V. के कारण आज जितना समय बर्बाद हो रहा है, उतना इतिहास में कभी किसी दूसरी वजह से नहीं हुआ - वैसे facebook भी बहुत तेज़ी से इस श्रेणी में आता जा रहा है।  T.V. के कई दुष्प्रभाव होते है, लेकिन हम यहाँ पर केवल समय की बर्बादी के बारे में बात करेंगे।  एक survey में यह पाया गया कि लोग हर सप्ताह लगभग 17 घंटे tv देखते है यानी लगभग ढ़ाई घंटे प्रति दिन।  इसका मतलब है कि लोग हर दिन अपने पास उपलब्ध सक्रिय समय का 20% हिस्सा टी.वी देखने में गवा रहे है। 

     जरा गौर से सोचें, अगर आपने टी.वी नहीं देखा, तो क्या आफ़त आ जायेगी ?  अक्सर होता यह है कि हम यह सोचकर टी.वी देखने बैठते है कि बस आधा घंटा देखेंगे।  आधा घंटे बाद दूसरे चैनल पर कोई अच्छा कार्यक्रम दिख जाता है और इस तरह कब दो घंटे हो जाते है, पता ही नहीं चलता।  इस चक्कर में आपके बहुत से जरूरी काम अधूरे रह जाते है।  टी.वी के बहुत से समर्थक इसके शैक्षिक महत्त्व का दावा करते है, लेकिन मुझे आज तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जो सिर्फ़ शैक्षिक महत्त्व के लिए टी.वी देखता हो।  अगर शिक्षा ही ग्रहण करनी है, तो टी.वी से बेहतर विकल्प मौजूद है - पुस्तकें पढ़े या इंटरनेट से जानकारी लें।  वैसे यदि आप टी.वी पर केवल ज्ञानवर्धक कार्यक्रम ही देखते है, तो यह अध्याय आपके लिए नहीं है।  मेरे एक परिचित है, जिनके यहाँ टी.वी सुबह से रात तक चलता रहता है।  सुबह वे खुद न्यूज़ देखते है, बीच-बीच में बच्चें स्कूल जाने से पहले कार्टून देख लेते है, दोपहर में पत्नी के सीरियल्स और गाने चलते है, शाम को वे ख़ुद घर लौटकर न्यूज़ और सीरियल्स देखते है, बीच-बीच में बच्चें कार्टून देखते है।  यानि  टी.वी के प्रति ही समर्पित होता है।  टी.वी उनके परिवार का एक स्थायी और सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य बन चूका है।  और तो और, वे खाना भी टी.वी देखते हुए ही खाते है, जिससे न तो उन्हें खाने का स्वाद आता है, न ही उन्हें यह अंदाज़ा रहता है कि  वे कितना खा गए।  नतीजा यह होता है कि  वे ज़रूरत से ज्यादा खाते है और दिनोदिन मोटे होते जाते है। 

     बच्चे कितनी देर तक टी.वी देखते है, इसका हिसाब लगाना मुश्किल होता है।  इसका एक उदाहरण देखें - चौथे ग्रेड की क्लास में एक सर्वे किया गया कि विद्यार्थी कितने घंटे टीवी देखते है।  तब उस क्लास में अमेरिकी संगीतकार रॉब जॉम्बी भी पढ़ते थे।  रॉब के शिक्षकों के होश उड़ गए, जब उन्हें पता चला कि रॉब एक दिन में नौ घंटे टीवी देखता है।  उन्होंने रॉब से पूछा कि रात को देर तक जगे बिना यह इतने समय टीवी कैसे देख लेता है।  उसका जवाब था, 'मै सुबह जल्दी उठ जाता हुँ और कई बार तो मुझे कृषि संबंधी कार्यक्रम देखने पड़ते है, क्योंकि इतनी सुबह वाही कार्यक्रम आते है।'  इस प्रसंग को कई साल हो चुके है।  अब तो चौबीसों घंटे मनपसंद कार्यक्रम चलते रहते है और अपने मन पर काबू रखने के लिए काफी अनुशासन की जरूरत होती है। 

     यदि आप अपने समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना चाहते है, तो टीवी के संदर्भ में सावधान रहें। 

     अख़बार टीवी की तुलना में जानकारी का बेहतर साधन है।  अख़बार हमें पुरे संसार की जानकारी देता है और हमारा ज्ञान बढ़ता है, लेकिन इसके दूसरे पहलू पर भी नज़र डालकर देख लें।  अगर सचिन तेंदुलकर ने अपने क्रिकेट करियर का 100 वा शतक बना दिया, तो उसके विस्तृत विवरण पढ़ने से क्या लाभ है, जब तक कि आपकी क्रिक्रेट में रूचि न हो ?  कैटरिना कैफ़ या सलमान खान के प्रेम प्रसंगों के बारे में पढ़ने से आपको क्षणिक आनंद के शिव क्या मिल रहा है ?  अख़बार में पढ़ने के लिए चटपटी या मसालेदार खबरों के बजाय केवल सकारात्मक और ज्ञानवर्द्धक ख़बरें ही चुनें, क्योंकि इस तरह आपका बहुत सा समय बच सकता है। 

     महत्त्वपूर्ण सिद्धांत यह हैं कि अपने काम से काम रखें और दीगर बातों को नज़र अंदाज कर दे।  और यह बात टीवी और अख़बार के संदर्भ में ही नहीं, हर चीज़ पर लागू होती है।  ब्रिटिश गायक क्रैग डेविड जैसे बनें, जो हर दिन अपनी दाढ़ी सँवारने में 40 मिनट बर्बाद कर देते थे।  अगर आप इस सिद्धांत पर अमल करते है, तो आप कम से कम आधे घंटे का समय बचा लेंगे, जिसमें आप अपने महत्त्वपूर्ण काम निबटा सकते है। 

इस तरह सीखें, जैसे आप हमेशा जिन्दा रहेंगे, इस तरह से जिए जैसे आप कल ही मरने वाले हो। 
                                                                 - अज्ञात     

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