8 September 2015

हमे कर्मों का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं।


मित्रों आज तक हम सुनते आये है कि हमें कर्मो का फल मिलता हैं। 

     पर गलत हमें कर्मो का नहीं बल्कि भावों का फल मिलता हैं। कर्म तो मात्र एक साधन है फल तक पंहुचने का।
आइये एक कहानी द्वारा आपको कर्मो के फलों को बदलने का राज बताता हूँ।

     मित्रों एक समय की बात है एक सन्यासी अपनी कुटिया के बाहर बैठकर रोज परमात्मा का ध्यान लगाता था। उसकी कुटिया के सामने एक वेश्या का भी घर था।

     सन्यासी रोज वेश्या के कर्मो को देखकर दिनभर मन ही मन यह विचार करता की देखो ये कितना नीच कर्म कर रही है और ईश्वर द्वारा मिली इस देह को पाप कर्म में लिप्त कर अपना नरक बना रही हैं।

     वही दूसरी और वो वेश्या सन्यासी को रोज भगवान् का ध्यान लगाते देख यह चिंतन करती थी की देखो साधू महात्मा कितने पुण्यशाली हैं जो हमेशा भगवान् के ध्यान में लीन रहते हैं।

     पूरे जीवन काल तक दोनों का चिंतन एक दूसरे के प्रति ऐसा ही बना रहा। मरणोपरांत जब दोनों ऊपर जाते है तब भगवान् अपने दूतों से वेश्या को स्वर्ग भेजने का और साधू को नरक में डालने का फैसला सुनाते हैं।

     भगवान् का फैसला सुनकर साधू, भगवान् से कहता है कि प्रभु इस वेश्या ने जीवन भर अपनी देह को पाप कर्मो में लगाए रखा और मैंने जीवन भर इस देह को आपके ध्यान में लगाके रखा, फिर इसे स्वर्ग और मुझे नरक क्यों ?

     भगवान् ने कहा साधू महात्मा आपका कथन बिल्कुल सत्य है। आपने जीवन भर अपनी देह को जप और ध्यान में लगाये रखा। परन्तु तन से भले ही आप मेरा नाम जप रहे थे, पर आपका मन और मानसिक ध्यान तो हमेशा वेश्या के पाप कर्मो के चिंतन में लगा रहता था। वहीँ दूसरी और ये वेश्या रोज आपको देखकर एक हीं चिंतन करती थी कि साधू महात्मा कितने पुण्यशाली है जो हमेशा भगवान् का ध्यान लगाते है। और आप हीं को देखकर ये निरंतर मेरा ध्यान करती थी।

     महात्मा जी कर्म भले ही अच्छे हो, पर अगर आपका "ध्यान" संसार की बुराइयों में है, आपके मन के भाव बुरे है, तब तक मुक्ति संभव नही।

     महात्मा जी मंदिर में आकर लोग मुझे कितने हीं हाथ जोड़ले, दंडवत करले, प्रसाद चढ़ाले या और भी मुझे रिझाने के कोई कर्म करले, पर में वो कुछ नही देखता, में तो इतना कुछ करने के बाद भी उनके कर्म के पीछे छुपे मन के भावों को हीं देखता हूँ और उन्ही भावों के अनुसार उसके कर्म करते हीं फल देता हूँ।

     महात्मा जी लोग भले हीं रोज मंदिर जाते हो, परन्तु ये जरुरी नही की वे सुखी हो पायेंगे। क्योकि इस कलयुग में अधिकतर लोग अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु मन में बुरे भाव रखकर मुझे रिझाने का प्रयास करते हैं। हाथ मुझे जोड़ते है और मन से किसी और को कोसते हैं। पर में तो कर्म के सिद्धांतो की मर्यादा से बंधा हूँ.... इसलिये जैसे ही किसी ने हाथ पैर जोड़ने का कर्म किया, बस फिर में उसके मन के भावों के अनुरूप उसे फल देने को मजबूर हूँ।
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      मित्रों इस कहानी से तात्पर्य ये हैं कि भगवान हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल देते हैं। कर्म तो मात्र फल तक पंहुचने का एक साधन हैं।

     जैसे सीता हरण और रुकमनी हरण दोनों कर्म एक जैसे थे, परन्तु भाव अलग-अलग होने के कारण दोनों के फल भी भिन्न-भिन्न थे।

     जैसे कोई व्यक्ति किसी पर लाठी चार्ज करे तो उसको जेल में डाल दिया जाता हैं। पर इसकी जगह अगर पुलिस वाले लाठी चार्ज करे तो उन्हें कोई जेल में नही डालता बल्कि प्रमोशन दिया जाता हैं। आखिर दोनों के कर्म एक से होते हुए भी फल भिन्न-भिन्न क्यों ? वो इसलिये की उस व्यक्ति का भाव हिंसा फैलाने का था और पुलिस का भाव हिंसा मिटाने का था।

     तो मित्रों देखा दो लोगों ने एक ही तरह के कर्म किये फिर भी उनके फल भिन्न-भिन्न मिले। फिर आप कैसे कह सकते है कि हमें कर्मो का फल मिलता हैं। कर्म तो मात्र एक साधन है, फल तक पहुँचने का। बाकि फल का निर्धारण तो आपके भाव के साथ ही हो जाता हैं।

     इसलिए मित्रों में इस बात का खंडन करता हूँ कि हमें कर्मो का फल मिलता हैं।हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं।

     मित्रों इस कर्म के सिद्धांत को अगर आप समझ गए हैं तो आज से ही अपने हर कर्म को अच्छे भावों से जोड़ दीजिये। ऐसा करने से निश्चित हीं आपको कम समय में और न्यून परिश्रम में ही अच्छे परिणामों की प्राप्ति होने लगेगी।


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4 September 2015

आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही हैं


     भले हीं आपके भाग्य में कुछ नहीं लिखा हो पर अगर "गुरु की कृपा" आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही हैं।

     आइये मित्रों जो किस्मत में नही लिखा है वो कैसे पाया जा सकता हैं, इसका लोजिक बताता हूँ।
मित्रों एक सत्य घटना हैं।

      काशी नगर के एक धनी सेठ थे, जिनके कोई संतान नही थी। बड़े-बड़े विद्वान् ज्योतिषो से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला। सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठजी को किसी ने सलाह दी की आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते है तब भगवान "राम" स्वयं कथा सुनने आते हैं। इसलिये उनसे कहना कि भगवान् से पूछे की आपके संतान कब होगी।

     सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते है और अपनी समस्या के बारे में भगवान् से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है, की प्रभु वो सेठजी आये थे, जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे। तब भगवान् ने कहा कि गोवास्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं।

     दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं। सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते है।

     थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते है। और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है की भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं। तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी। व्यापारी की पत्नी उसे दो रोटी दे देती है। उससे प्रसन्न होकर संत ये कहकर चला जाता है कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी।

     एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वाँ संताने हो जाती है। कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता हैं। व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते है। उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है की ये बच्चे किसके है। व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही है। आपने तो झूठ बोल दिया की भगवान् ने कहा की मेरे संतान नही होगी, पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वा संताने हुई हैं। गोस्वामी जी ये सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते है। फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं। उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है।

      शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं, तो भगवान् उनसे पूछते है कि गोस्वामी जी आज क्या बात है? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो? तो गोस्वामी जी कहते है की प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया। आपने तो कहा ना की व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है फिर उसके दो संताने कैसे हो गई।

      तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता क्योकि में नियमो की मर्यादा में बंधा हूँ। पर अगर.. मेरे किसी भक्त ने उन्हें कह दिया की तुम्हारे संतान होगी, तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी। क्योकि में भी मेरे भक्तों की मर्यादा से बंधा हूँ। मै मेरे भक्तो के वचनों को काट नही सकता मुझे मेरे भक्तों की बात रखनी पड़ती हैं। इसलिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते की जा तेरे संतान हो जायेगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वो सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके नही लिखा हैं।
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      मित्रों कहानी से तात्पर्य यही हैं कि भले हीं विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो, पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही।

इसलिए कहते है मित्रों कि...
भाग लिखी मिटे नही, लिखे विधाता लेख
मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख ।।

     भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नही सकता। पर किसी पर गुरु की मेहरबानी हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता हैं।



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15 August 2015

रहस्य

"रहस्य"

जो जीवन में आपको सब-कुछ देगा।

     दोस्तों, बहुत दिनों बाद लिख पा रहा हूँ। कुछ समय का अभाव और कुछ रहस्यों की खोज में समय निकल जाता हैं पर फिर भी जितना हो सके कोशिस करता हूँ कि जो मुझे पता हैं उस अनुभव को आपके साथ शेयर करूँ।

     आज मै एक बार फिर ध्यान की ही कुछ बात बताउँगा। हालाँकि मैं तो ध्यान के नित नये प्रयोग करता रहता हूँ। ध्यान का विषय तो अतिरहस्यमय हैं, इसकी शक्तियां इतनी ज्यादा हैं कि आम आदमी को सोच से परे हैं। पर संसार का एक मात्र सच यही है कि आज हमारे जीवन में हम जिन अच्छे-बुरे परिणामों को प्राप्त कर रहे हैं वो हमारे ध्यान के ही परिणाम हैं। पूरा संसार ध्यान के परिणामों को ही भोग रहा हैं। दोस्तों ईश्वर की यह कार्यप्रणाली इतनी शूक्ष्म हैं कि हम हर पल इससे जुड़े होते हुए भी इसे समझ नही पाते। इसलिये मित्रों ध्यान की इस प्रणाली को मात्र समझने की कोशिस ही न करें, बल्कि करें और देखें कि क्या सच में ये काम करता है या नही।

     आप जब देखेंगे तो जानेगे की ये बहुत आसान है और मेरा विश्वास मानिये कि जीवन में यही सिद्धांत काम करता है। मित्रों हम जाने अनजाने में जो भी सूचनायें अपने मन को देते है वही विचार लगातार मन के "ध्यान" द्वारा निश्चित ऊर्जा पाकर सच मे बदल जाते हैं। और अगर हम इस जादुई शक्ति को ठीक से उपयोग कर सकें तो किसी कथाकार की तरह हम अपने जीवन की कहानी जैसे चाहे लिख सकते हैं। फिर हमे भाग्य को या भगवान को या समाज को दोष देने की जरूरत नही है।

     मित्रो असल में अपने सारे दुखों और सुखों के लिये हम खुद ही जिम्मेदार हैं कोई दूसरा नहीं। हमने जाने-अन्जाने में अक्सर अपने मन को नकारात्मक सूचनायें देकर नकारत्मक बातों की और "ध्यान" लगाकर दुखों को अपने पास बुलाया है। पर इस बात हम समझने और मानने को तैयार नही कि हर नकारात्मक विचार हमारे "ध्यान" से ऊर्जा पाकर फलीभूत हो जाता हैं।

     हम लोग तो हमेशा अपने दुखों की रसीद दूसरों के उपर फाडने को तैयार रहते हैं। पर नहीं, अब बस भी करें, जीवन को और नरक न बनने दें, सत्य को समझे। थोडा अपने ईगो को साईड मे रखें, मेरी बात को थोडा समझने का प्रयास करें, फिर आपका जो फायदा होगा वो आप अपनी कल्पनाओं मे भी नहीं सोच सकते।

     दोस्तों जीवन को बदलने का बस एक यही तरीका है। मैंने पिछले 20 वर्षों की शोध के बाद इस सिद्धांत को समझा हैं। ज्योतिषीय ज्ञान प्राप्त करने के बाद ज्योतिषीय उपायों द्वारा लोगों के जीवन में परिवर्तन देख कर मैं हैरान हो गया.. कि जिन लोगों की जन्मपत्री में जो योग नही थे.. उनसे सम्बंधित उपाय करने से वे उस सुख को प्राप्त हो गये। बस इसी के चलते मुझे उपायों के पीछे छुपे रहस्य का ज्ञान हुआ की इस मन को लगातार किसी उपाय के माध्यम से हमने मश्तिष्क को वे सन्देश भेजे जो परिणाम हमें चाहिये थे। और एक निश्चित ऊर्जा पाकर वे संदेश फलीभूत हो गए। हालाँकि इस रहस्य का विज्ञान बहुत गहरा हैं, और अपनी शोध के चलते में पूर्णरूप से इसकी गहराई को समझ चूका हूँ कि कैसे हम अपने स्वभाव के अनुरूप अच्छी-बुरी बातों में अपना "ध्यान" लगाकर अच्छे-बुरे परिणामों की यात्रा करते हैं। पर उन सभी तथ्यों को मात्र एक छोटे से लेख में बताना सम्भव नहीं।

     इसलिये आप सिर्फ इतना समझ लें कि आपको अपने मन को लगातार सकरात्मक सूचनाएँ देनी हैं, कभी भी बुरी बातों और बुरे शब्दों की तरफ अपने "ध्यान" को आकर्षित होने नही देना हैं, लगातार अच्छी बातों और शब्दों से जुड़ा रहना हैं। यही कारण था कि हमारे ऋषि-मुनियों ने कथा-कहानिये, गीता-रामायण, पूजा-पाठ इत्यादि कर्मों पर "ध्यान" देने का जोर दिया था।

     मित्रों निरन्तर अपने मन को अच्छी सूचनायें देना बहुत ही आसान तरीका है। इसके लिये आपको किसी ज्योतिष या गुरु इत्यादि की जरूरत नही। बस अपनी किसी भी एक ईच्छा को या किसी एक लक्ष्य को चुन लें, और लगातार ऐसा महसूस करे की आप उस लक्ष्य को पा चुके हैं। अपने मन को लगातार ऐसी सकारात्मक सूचनाएँ देते रहिये-देते रहिये, और फिर देखिये कि ये जादू कितनी सहजता से ये काम करता है। मै दावे के साथ कहता हूँ कि ये सिद्धांत ही हमारे जीवन में हमे परिणामों तक पहुँचाता हैं, यह कभी फेल नही जाता।

     मित्रों जब से मैंने इस सिद्धान्त को समझा हैं तब से कितने ही लोगों के माइंड को प्रोग्राम कर यानी सकारत्मक मैसेज प्रेषित कर उन्हें सकारात्मक परिणामों तक पहुंचाया हैं। पर सब लोगों के माइंड को प्रोग्राम करना मेरे लिये सम्भव नही। इसलिये इस रहस्य के एक छोटे से नियम को आपके मश्तिष्क में प्रेषित कर रहा हूँ। भरपूर लाभ उठाइये।

     दोस्तों किसी सायर ने कहा हैं कि... किसी चीज को तुम सिद्दत से चाहो तो सारी कायनात तुम्हे उसे मिलाने में लग जाती हैं।



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6 July 2015

कैसे लोगों की एनर्जी चुराकर आप भी जीवन की उंचाईयों को छू सकते हैं


     कैसे लोगों की एनर्जी चुराकर आप भी जीवन की उंचाईयों को छू सकते हैं।

     आइये मित्रों इस रहस्य को समझते हैं।

     मित्रों अभी कुछ समय पहले मैंने अपने एक लेख में लिखा कि "भगवान् मूर्ती में नही बल्कि आपके मन में होते हैं, और आपके ही मन से "ध्यान" की ऊर्जा पाकर एक पत्थर भी भगवान् बन जाता हैं।

     मित्रों "दर्शन-शास्त्र" से जुड़ने के बाद मैंने यह पाया कि संसार में आज हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा हैं वो हमारे मन के "ध्यान"  की वजह से हो रहा हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसको क्रमश: आत्मा और परमात्मा से ऊर्जा प्राप्त होती हैं, और इस मन का निरंतर ध्यान जिस भाव के साथ जिस विषय पर होता हैं, वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उधर होने लगता हैं।

     मित्रों जैसे भगवान् "राम" की मूर्ती को देखते समय आपके मन में या भाव होता हैं कि ये भगवान् हैं, जो हमारा कल्याण करते हैं। और ये ही नही मित्रों भगवान् "राम" का नाम लेते ही उनसे जुड़े सभी तथ्य हमारे अवचेतन मन से निकलकर चेतन मन पर उजागर हो जाते हैं। मित्रों यह प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से स्वत: ही संपन्न होती हैं और इसके चलते आपके मन के इन्ही भावों के साथ आपका "ध्यान" उस मूर्ती पर बनता हैं। और आपका ध्यान जैसे भाव के साथ होता है वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उस मूर्ती की और हो जाता हैं जिसके चलते उस मूर्ती के चारों और वैसा ही "चुम्बकीय-क्षेत्र" यानी आभामंडल तैयार होता हैं। और जितने अधिक लोगों का ध्यान उस भाव के साथ उस मूर्ती पर होता हैं उसका आभामंडल उतना ही कल्याणकारी और शक्तिशाली होता जाता हैं।

     मित्रों हमारे मन से ये जो ऊर्जा (Magnetic Waves) निकलती हैं, उसे हम खुली आँखों से नही देख सकते। पर मन से ऊर्जा निकलती हैं ये ही सत्य हैं। आपने "नजर" लगने के बारे में तो सुना ही होगा। हालाँकि नजर तो सबकी एक जैसी ही होती हैं, दिखता तो सबको एक जैसा ही है। नजर ना तो अच्छी होती हैं और ना ही बुरी होती हैं। बस हर नजर के पीछे अच्छा-बुरा भाव जुड़ा होता हैं। किसी ने आपको बुरी नजर से देखा तो उसके मन से निकली नकारात्मक ऊर्जा आपके आभामंडल को खंडित करती हैं, और अच्छे भाव से आपको देखा तो आपका आभामंडल सकारात्मक ऊर्जा से पोषित होता हैं।

     मित्रों जब एक पत्थर मूर्ती, लोगों के ध्यान की ऊर्जा पाकर भगवान् बन सकती हैं, या लोगों की अच्छी-बुरी नजर आपको प्रभावित कर सकती हैं, तो लोगों के ध्यान की यही ऊर्जा आपको महान भी तो बना सकती हैं।
पर कैसे ???    आसान हैं दोस्तों...

     बस आपको लोगों के समक्ष स्वयं को एक बेहतर इंसान के रूप में प्रस्तुत करना हैं, किसी के भी मन में आपके प्रति किसी भी प्रकार का बुरा भाव ना रहे, ऐसा बनना हैं। लोगों का ध्यान आप पर जितना अच्छा होगा उतना ही उनकी सकारात्मक ऊर्जा से आपका आभामंडल पोषित होगा।

     मित्रों अगर आपका स्वभाव घमण्डी किस्म का हैं, तो मान के चलिये आपका घमण्ड चूर-चूर होने वाला हैं।

      क्यों ?

      क्योंकि जिन लोगों का स्वभाव घमण्डी होता हैं, उनके प्रति लोगों का भाव ये बनता हैं कि "भगवान् इसका घमण्ड चूर-चूर कर देगा"। बस मित्रों लोगों के इसी ध्यान के चलते ब्रह्माण्ड में आपके घमण्ड को चूर-चूर करने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती हैं जिसके चलते आपका ऐसी समस्या से सामना होता हैं जो आपके घमण्ड को चूर-चूर कर देती हैं।

     मित्रों आप जो भी काम करते हो उस काम की सफलता-असफलता का पता लगाना हैं तो लोगों के नेचर को पकड़ना सीखो, कि आपके इस काम के प्रति लोगों का भाव कैसा हैं। आपके काम के प्रति अधिकतर लोगों की क्या भावना हैं। बस अगर आपने "नेचर" को समझना सिख लिया तो दुनिया में आपसे कोई चीज अछूती ना रहेगी।

     मित्रों आप आज ये बात भलीभाँति समझ लीजिये कि आज लोगों का जैसा ध्यान आप पर हैं, उनके ध्यान की ऊर्जा पाकर आप वैसे ही परिणामों को प्राप्त होंगे। यह ईश्वरीय कार्यप्रणाली का ही एक हिस्सा हैं जो लोगों के ध्यान के जरिये आप ही के स्वभावनुसार आपको फल तक पहुंचाता हैं।

     अब अगर आप धनवान बनना चाहते हैं तो अपने और अपने परिवार वालों का रहन-सहन और व्यवहार ऐसा बनाइये की लोगों को लगे की आपका परिवार धनवान और संपन्न हैं। लोगों के लगातार ऐसे ध्यान के चलते उनके मन से निकली वैसी ही ऊर्जा आपको उस परिणाम तक पहुँचा देगी। पर मित्रों ये प्रक्रिया धीरे-धीरे प्रारम्भ करें। और इसमें लोगों को ऐसा भी ना लगे की आप दिखावा कर रहे हैं, नही तो उनका ध्यान अगर ऐसा बन गया की आप दिखावा कर रहे हैं, तो आप जीवन भर दिखावा ही करते रह जायेंगे।

     तो मित्रों इसे कहते हैं लोगों की ऊर्जा को चुरा कर जीवन की ऊंचाइयों को छूना।

     मित्रों बड़े-बड़े फिलोसॉफर अपने इसी ज्ञान के सहारे लोगों की एनर्जी चुरा कर अपने अलग-अलग पंथ बनाकर अमर हो गये। और आज भी इस फिलोसोफी को समझने वाले बड़े-बड़े गुरु लोग, लोगों को सम्मोहित कर अपने समागम द्वारा हजारों लोगों के ध्यान को अपनी और आकर्षित कर अपना नाम कमा रहे हैं।

     आइये दोस्तों आज ही अपने स्वभाव में परिवर्तन की शुरुआत कर, एक सुन्दर जीवन की और कदम बढाइये।

     सुनहरा भविष्य आपका इन्तजार कर रहा हैं।

Good Luck...

          Astrologer & Philopher
               Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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30 June 2015

कछुए की अँगूठी का रहस्य


मित्रों मेरा पिछला आर्टिकल "कछुए की अँगूठी का रहस्य"

     इस लेख सम्बन्धी मुझसे कुछ लोगों ने प्रश्न किया कि सर हमने कुछ समय पहले कछुए की अंगूठी धारण की थी, पर उसके बाद मन अशांत और चिड़चिड़ा रहने लगा और इसके चलते अँगूठी उतार दी।  और ऐसे में आपका विज्ञान और उसका सिद्धांत कि कछुए की अंगूठी धारण करने से सम्रद्धि आती हैं, वह धरा का धरा रह गया। ऐसा क्यों ?

     मित्रों कछुए की अँगूठी धारण कराने के पीछे हमारा एक मात्र प्रयोजन होता हैं कि व्यक्ति के "ध्यान" की दिशा को कछुए से सम्बंधित धारणाओं व गुणों इत्यादि से जोड़ना। यानी व्यक्ति के स्वभाव में कछुए के स्वभाव जैसे गुणों को विकसित करना।

     मित्रों अंगूठी धारण करने के बाद जैसे-जैसे हमारा जुड़ाव इस अँगूठी के साथ बढ़ता रहता हैं वैसे-वैसे स्वभाव में परिवर्तन होना शुरू हो जाता हैं। और ऐसे में उन लोगों को इससे प्रारम्भ में कुछ तकलीफ महसूस होने लगती हैं, जिनका स्वभाव कछुए के स्वभाव से विपरीत यानी उद्दण्ड, फुर्तीला या खरगोश के स्वभाव जैसा होता हैं। मित्रों निसन्देह स्वभाव में अचानक आने वाले इस परिवर्तन के कारण किसी-किसी को कुछ चिड़चिड़ापन जरूर आ सकता हैं।

     पर 90 दिनों तक जब निरन्तर हम इस अँगूठी के संपर्क में रहते हैं तो कछुए का गुण-स्वभाव हमारे सबकोंसियश मस्तिष्क में प्रोग्राम हो जाता हैं। जैसे कंप्यूटर में जब नया वर्जन आ जाता हैं तब कुछ दिनों तक अजीब सा लगता हैं ना, ठीक वैसे ही जब स्वभावगत परिवर्तन आते हैं तब थोडा अजीब सा महसूस होता हैं। और ऐसे में हम ये समझ कर अँगूठी निकाल देते हैं और बोलते हैं कि अँगूठी सूट नही हुई।

     मित्रों रत्न-धारण और कछुए की अंगूठी धारण करने के मूल में एक ही प्रयोजन हैं, भावों का परिवर्तन। क्योंकि भाव से स्वभाव बनता हैं, और स्वभाव के प्रभाव से कर्म संपन्न होता हैं, जिसके द्वारा हम फल तक की यात्रा करते हैं। इसलिए मित्रों अच्छा भाव होगा, तो अच्छा ही स्वभाव होगा, और स्वभाव अच्छा हुआ तो उसका प्रभाव और फल भी अच्छा ही होगा।

     भाव-स्वभाव-प्रभाव-क्रिया-कर्म-फल...(कर्म-सिद्धांत)

     मित्रों कछुए की अँगूठी धारण करने से सम्रद्धि आती हैं ऐसा मैंने सुना था। पर जब तक स्वयं किसी तर्क पर न पहुँच जाऊँ तब तक में उस बात को नही मानता, ये मेरा स्वभाव हैं। किसी भी उपाय के विज्ञान को समझे बिना उसका उपयोग करना मात्र मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं। शोध किसी की भी हो, पर उस पर अपना अनुभव एक मजबूत आत्मविश्वास पैदा करता हैं।


        Astrologer & Philopher
            Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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25 June 2015

क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर


क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर ?

     मित्रों अक्सर हम सुनते है कि जब किसी को नजर लग जाती है तो उसे कहते हैं कि अपनी मुट्ठी में राई लेकर अपने सिर से सात बार वार कर फेंक दो। क्या राई को सात बार वार देने क्या नजर उतर सकती हैं ? आइये इसके पीछे क्या विज्ञान काम करता हैं समझने का प्रयास करते हैं।

     मित्रों अक्सर आप देखते होंगे की राई को जब किसी प्लास्टिक बेग से निकालते हैं तो राई उस प्लाष्टिक बेग से चिपक जाती हैं। वो उसके चुम्बकीय गन के कारण होता हैं। हालाँकि संसार की सभी चीजों में अपना एक चुम्बकीय गुण होता हैं पर राई में घर्षण से उसका चुम्बकीय गुण जल्दी सक्रिय हो जाता हैं जिसके चलते ये जल्दी ही किसी के औरा के संपर्क में आकर उसके नकारत्मक फिल्ड को अवशोषित कर लेती हैं।

     जब राई को सात बार हमारे शरीर पर से वारा जाता हैं तब इसका संपर्क हमारे शरीर के आभामंडल से होता हैं, जिसे हम सुरक्षा चक्र भी कहते हैं। राई के लगातार हमारे आभामंडल से टकराने से इसका चुम्बकीय गुण सक्रीय होकर हमारे शरीर के सातों चक्रों में फैली नकारात्मकता को सोख लेता हैं। सात बार वारने का मतलब हमारे सूक्ष्म शरीर के सातों चक्रों का शुद्धिकरण करना होता हैं। सात बार राई को वारने के बाद उसे घर से कुछ दूर नाली में फेंक दिया जाता हैं या जलाकर नष्ट कर दिया जाता हैं।

     मित्रों वैसे आभामंडल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसके लिए साधारण तौर पर इतना बता देता हूँ कि आभामंडल हमारे शरीर का सुरक्षा चक्र होता हैं। जब ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अच्छी-बुरी दशा चलती हैं तो उसका सबसे पहला प्रभाव हमारे आभामंडल पर ही पड़ता हैं। पर अगर हम किसी अच्छी संगत, अच्छे विचार या किसी ज्ञानी गुरु के संपर्क में हो या किसी भगवान् में हमारी आस्था बहुत मजबूत हो तो ग्रहों के बुरे प्रभाव की रश्मियाँ हमारे उस आभामंडल यानी सुरक्षा चक्र का भेदन करने में कामयाब नही होती। इसलिए जो लोग निरंतर सत्संग करते हैं, सकारात्मक विचारों के संपर्क में रहते हैं ऐसे पुण्यशाली लोगों पर ग्रहों, टोने-टोटके और नजर इत्यादि का बुरा प्रभाव आसानी से नही पड़ता। और न ही कोई नकारात्मकता उनके आभामंडल को भेद पाती हैं।

     मित्रों ऐसे कई सारे टोटके इत्यादि है जिन्हें हम अंधविश्वास का नाम देकर नजर अंदाज कर देते हैं। क्योंकि हमें इनके गर्भ में छूपे सिद्धांत का पता नहीं होता।

(वैसे मित्रों कलयुग के चलते सदियों से चलती परम्पराओं के साथ आजकल कुछ बेतुके अंधविश्वासों का जन्म भी हो गया हैं जिनसे हमें सावधान रहने की जरुरत हैं। बिना वैज्ञानिक अर्थ के किसी बात को मान लेना मात्र मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं)


       Astrologer & Philopher
            Gopal Arora
 









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20 June 2015

Electro magnetic field


     दोस्तों जिसे हम लोग आम भाषा में आत्मा, भूत या देव ईत्यादि नामों से जानते हैं वास्तव में वो एक "electro magnetic filed" है, यानी विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र हैं। और इस चुम्बकीय क्षेत्र में हमारे जन्म-जन्मांतरों के डेटा "चुम्बकीय तरंगो" के रूप में रक्षित होते हैं।

     दोस्तों कम्प्यूटर, सी डी या हार्ड डिस्क इत्यादि में रक्षित सभी डेटा मूल रूप में "electro magnetic filed" के रूप में ही रक्षित होते हैं। और सीडी या हार्ड डिस्क ईत्यादी घटक तो मात्र इन चुम्बकीय तरंगो को सुरक्षित रखने का साधन मात्र होते हैं। बाकी ये सभी डेटा कम्प्यूटर ईत्यादि के माध्यम से "चुम्बकीय तरंगो" के रूप में ब्रम्हांड में ही रक्षित होते हैं। बिना कम्प्यूटर इत्यादि के सहयोग के बिना इनका निर्माण नही हो सकता।

     बिल्कुल ठीक ऐसे ही हमारी आत्मा रुपी ऊर्जा के कण पर जन्म-जन्मान्तर के हमारे विचारों, भावों और कर्मो के डेटा रिकॉर्ड होते हैं। जब हम जन्म लेते हैं तब आत्मा के साथ ये रिकॉर्डेड डेटा शरीर के विकास के साथ न्यूरोन्स द्वारा रीड होकर शरीर रूपी कम्प्यूटर के साथ रन होने लगते हैं। जन्म-जन्मांतरों से रक्षित ये डेटा एक प्रोग्राम के रूप में हमारे स्वभाव के साथ सक्रीय हो जाते हैं। और उन्हीं रिकॉर्डेड प्रोग्राम के चलते हमारा स्वभाव चुनाव प्रक्रिया द्वारा कर्मो का चुनाव कर अच्छे-बुरे परिणामों की यात्रा करता हैं। और इसके साथ-साथ हमारा कम्युटर सिस्टम इस जन्म के भावों, विचारों और कर्मो को निरंतर अपनी मैमोरी में "electro magnetic filed"  के रूप में निरंतर रिकॉर्ड करता रहता हैं। 

     एक बात ध्यान रखे की जैसे हार्ड डिस्क ईत्यादि में डेटा को रक्षित करने के लिये कंप्यूटर इत्यादि घटक की आवश्यकता होती हैं ठीक वैसे ही हमारी आत्मा पर रक्षित ये डेटा भी बिना शरीर के ना तो रिकॉर्ड हो सकते हैं और ना ही रन हो सकते हैं। इसलिए अक्सर हम कथाओं में सुनते हैं की देवता लोग भी ये मनुष्य शरीर पाने हेतू लालायित रहते हैं। क्योकि बिना शरीर के देवता भी कुछ नही कर सकते और ना ही प्रेत कुछ कर सकते हैं।

     अक्सर हम जब किसी शरीर में देव या प्रेत ईत्यादि की उपस्थिति देखते हैं तब व्यक्ति के शरीर की हरकते बदल जाती हैं। उसकी आवाज इत्यादि भी बदल जाती हैं। मित्रों आत्मा, प्रेत या देव ईत्यादि के "electro magnetic filed" किसी शरीर में प्रवेश नही करते बल्कि हमारे मस्तिष्क के न्यूरोन्स इनके द्वारा भेजे गये चुम्बकीय सन्देशों को रीड कर प्रतिक्रिया शुरू कर देते हैं। जैसे एक सीडी में लतामंगेशकर के गाने हैं तो क्या सीडी पड़े-पड़े बोल उठेगी ? नही ना... उसके लिए हमे कम्प्यूटर या सीडी प्लेयर ईत्यादि की जरुरत होगी। सीडी में रक्षित डेटा का सम्पर्क कम्प्यूटर ईत्यादि से होने पर ही लता मंगेशकर की आवाज में गाने बजने शुरू होंगे। बस ठीक इसी तरह हमारे मष्तिष्क के न्यूरोन्स ऐसे ही किसी Magnetic Field ke संपर्क में आने पर वैसी ही प्रतिक्रिया देंगे।

     दोस्तों सारा का सारा संसार इन्ही तरंगो के रहस्यों से भरा पड़ा हैं। जो मैंने आपको बताया हैं वैसा आपने कही नही पढ़ा होगा। क्योंकि ये शोध बिलकुल नई हैं जिस पर विशवास कर मान लेना अभी फिलहाल नामुनकिन हैं। पर मित्रों इन पर बहुत शोध चल रहा हैं और आने वाले सौं वर्षों में इस क्षेत्र में एक बहुत बड़ी क्रांति देखी जा सकती हैं। आजतक हम जो सुन रहे हैं और पढ़ रहे हैं वो  धर्म और धार्मिक ग्रंथों की सीमा के दायरे में सिमित हैं। पर इस फिलोसोफी तक पहुँचने के लिए आपको धर्म की सीमाओं से ऊपर उठना होगा।
लिखने को और बताने को बहुत कुछ हैं पर समय का अभाव हैं दोस्तों। जब भी समय मिलेगा तब इस विषय पर और चर्चा करेंगे।

     मेरे विचार और सोच लीक से हटकर हैं। और मैं जानता हूँ की वर्तमान परिपेक्ष में इन तथ्यों को स्वीकारा जाना नामुनकिन हैं। क्योकि भविष्य की बातों को वर्तमान में स्वीकार करना कठिन हैं। ये विचार मेरे स्वतंत्र विचार हैं, मैं किसी पर अपने विचार थोप नही रहा हूँ। किसी को इसमें रूचि हैं तो स्वयं शोध करें। ध्यान के माध्यम से ब्रम्हांड की इन सूक्ष्मताओं से संपर्क किया जा सकता हैं। ध्यान के सहारे जब आप की ऊर्जा सहस्त्रार तक पहुँचती हैं तो आपके मष्तिष्क में चींटिया सी रेंगने लगती हैं। विज्ञान की भाषा में आपके न्यूरोन्स को अत्यधिक ऊर्जा मिलती हैं जिसके चलते आपके न्यूरोन्स की सेन्सेटिविटी बढ़ जाती हैं। और इसी के चलते आपकी चुंबकीय तरंगे ब्रम्हाण्डीय रहस्यों को खोजने में कामयाब हो जाती हैं।

              Astrologer & Philopher
                    Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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13 May 2015

आखिर क्या रहस्य छुपा हैं कछुए की आकृति वाली अँगूठी में


मित्रों आजकल अधिकतर लोगों को कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी धारण किये हुए देखा जाता हैं।

      पर क्या कछुऐ की अँगूठी वास्तव में सम्रद्धि लाती हैं ?

      क्या इसके धारण करने से जीवन में खुशहाली आती हैं ?

      आइये इसके पीछे क्या सिद्धांत काम कर रहा हैं उसको समझते हैं।

     मित्रों आपने अक्सर मेरे लेख पढ़े होंगे। मैं हमेशा एक ही बात पर जोर देता हूँ कि, जीवन के इस सफर में आज हम जहाँ पर भी खड़े हैं, और जैसी भी स्तथि में हैं, उसका मूल कारण हमारा "ध्यान" हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसका ध्यान जिस और होता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी उस और बहने लगता हैं। और हमारे मन के भावों की ऊर्जा ध्यान के माध्यम से जिस और बहती हैं, हम उसी को प्राप्त होते हैं या उस लक्ष्य को पाते हैं।

    बस मित्रों कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी पहनने के पीछे भी यही "ध्यान" वाला सिद्धांत ही काम कर रहा हैं।
अँगूठी को धारण करने के बाद जब-जब हमारा "ध्यान" इसकी और जाता हैं तब कछुए के साथ जुडी धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर फ्लेश होती हैं। यह क्रिया स्वतः ही संपन्न होती हैं। मित्रों जब भी किसी वस्तु चित्र इत्यादि की तरफ हमारा ध्यान जाता हैं तब तत्काल उससे सम्बंधित धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर प्रकट हो जाती हैं। पूजा-पाठ इत्यादि के पीछे भी यही प्रयोजन हैं कि हम इनके माध्यम से ईश्वर से जुड़े रहे।

     मित्रों कछुआ धैर्य, शांति, निरन्तरता (Continuity), लक्ष्य और सम्रद्धि का प्रतिक हैं।  कछुए और खरगोश की कहानी तो सभी जानते हैं कि कैसे कछुए ने Continuity रखते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया। और कछुआ लक्ष्मी जी का प्रिय भी हैं। क्योकि लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी, इसलिए समुद्र से निकलने वाले सभी जीव मछली, कौड़ी, शिप, कछुआ इत्यादि सभी लक्ष्मी जी के मित्र माने जाते हैं।

     मित्रों कछुए को देखते ही उससे जुड़ी सारी धारणाओं की तरफ हमारा "ध्यान" चला ही जाता हैं, और इसी के चलते हमारे ध्यान की ऊर्जा का प्रवाह उस और हो जाता हैं, जिसके चलते हम धैर्य और शांत स्वभाव को रखते हुए समय पर लक्ष्य का भेदन कर सम्रद्धि को प्राप्त करते हैं।

     मित्रों यहाँ में एक बात और कहना चाहूँगा कि कछुए की आकृति वाली अँगूठी अगर किसी बच्चे को पहना दी जाये या किसी ऐसे व्यक्ति को पहना दी जाये जिसे कछुए से जुड़ी इन धारणाओं का ज्ञान नही, तो उसके लिए ये अँगूठी मात्र एक आभूषण साबित होगी। उसे इसका कोई लाभ प्राप्त नही होगा। क्योंकि उसके मन की ऊर्जा का प्रवाह इस और नही होगा।

     मित्रों हमारे धर्म की सभी परम्पराओं के पीछे भी यही सिद्धांत काम करता हैं। इन सभी परम्पराओं से जुड़ी कथा-कहानियों के माध्यम से हमारे "ध्यान" की दिशा को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया जाता हैं। इसलिए कहते हैं "दिशा बदलो, दशा तो अपने-आप बदल जायेगी"। यहाँ दिशा बदलने का मतलब विचारों की दिशा बदलने से हैं।

     मित्रों हमारे ऋषि-मुनियों को पता था कि इंसान इस रहस्य की गहराई को समझ नही पायेगा, इसलिये उन्ही सिद्धांतों को परम्पराओं का अमलीजामा पहना कर हमारे समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया। और हर परम्परा के द्वारा हमारे ध्यान को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया।

     मित्रों अपने गहन शोध के बाद मैंने जब इस "सिद्धांत" को समझा तो मैं हैरान रह गया कि हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषी-मुनियों और दार्शनिकों का चिंतन कितना गहरा रहा होगा, जिन्होंने इस सिद्धांत को समझकर अनेक ग्रंथो और परम्पराओं की रचनाएँ कर डाली।


     Astrologer & Philopher
            Gopal Arora









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12 May 2015

मंत्र जाप में अशुद्ध उच्चारण का प्रभाव


     मित्रों कई बार मानव अपने जीवन में आ रहे दुःख ओर संकटो से मुक्ति पाने के लिये किसी विशेष मन्त्र का जाप करता है, लेकिन मन्त्र का बिल्कुल शुद्ध उच्चारण करना एक आम व्यक्ति के लिये संभव नहीं है ।
अक्सर हम जैसे लोग ही कहा करते है कि देवता भक्त का भाव देखते है वो शुद्धि अशुद्धि पर ध्यान नही देते है, पर हमारा ऐसा कहना एक हद तक ठीक है।

     आइये मित्रों कर्म सिद्धांत के इस नियम को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों शास्त्रों में लिखा हैं। 

मूर्खो वदति विष्णाय, ज्ञानी वदति विष्णवे ।
द्वयोरेव संमं पुण्यं, भावग्राही जनार्दनः ।।

अर्थात -
मूर्ख व्यक्ति "" ऊँ विष्णाय नमः"" बोलेगा।
ज्ञानी व्यक्ति "" ऊँ विष्णवे नमः"" बोलेगा।

     मित्रों यहाँ इस मन्त्र में सिर्फ एक मात्रा के गलत प्रयोग (विष्णाय=विष) से अर्थ का अनर्थ हो गया। फिर भी मित्रों इन दोनों उच्चारणों का पुण्य समान ही मिलेगा, क्योंकि भगवान केवल भावों को ग्रहण करने वाले है। और जब कोई भक्त भगवान को निष्काम भाव से, बिना किसी स्वार्थ के याद करता है तब भगवान भक्त कि क्रिया ओर मन्त्र कि शुद्धि-अशुद्धि के ऊपर ध्यान नही देते है बल्कि वो तो केवल भक्त का भाव देखते है।
     पर मित्रों जब कोई व्यक्ति किसी विशेष मनोरथ को पूर्ण करने के लिये किसी मन्त्र का जाप या स्तोत्र का पाठ करता है तब सम्बन्धित देवता उस व्यक्ति कि छोटी से छोटी क्रिया ओर अशुद्ध उच्चारण पर ध्यान देते है। और जैसा वो जाप या पाठ करता है वैसा ही उसको फल प्राप्त होता है।

आइये इसी सन्दर्भ में एक व्रतांत बताता हूँ।

     एक बार एक व्यक्ति कि पत्नी बीमार थी। वो व्यक्ति पंडित जी के पास गया ओर पत्नी कि बीमारी कि समस्या बताई। पंडित जी ने उस व्यक्ति को एक मन्त्र जप करने के लिये दिया ।

      मन्त्र था  ""भार्यां रक्षतु भैरवी"" अर्थात हे भैरवी माँ मेरी पत्नी कि रक्षा करो। अब वो व्यक्ति मन्त्र लेकर घर आ गया। ओर पंडित जी के बताये मुहुर्त में जाप करने बैठ गया..    अब जब वो जाप करने लगा तो " रक्षतु" कि जगह " भक्षतु" जाप करने लगा। वो सही मन्त्र को भूल गया । " भार्यां भक्षतु भैरवी" अर्थात हे भैरवी माँ मेरी पत्नी को खा जाओ । "" भक्षण"" का अर्थ खा जाना है। अभी उसे जाप करते हुये कुछ ही समय बीता था कि बच्चो ने आकर रोते हुये बताया.. पिताजी माँ मर गई है। ऐसे में उस व्यक्ति को दुःख हुआ... साथ ही पण्डित जी पर क्रोध भी आया.. कि पंडित ने ये कैसा मन्त्र दे दिया।

     कुछ दिन बाद वो व्यक्ति पण्डित जी से जाकर मिला ओर कहा कि आपके दिये हुये मन्त्र को में जप ही रहा था कि थोडी देर बाद मेरी पत्नी मर गई... पण्डित जी ने कहा.. आप मन्त्र बोलकर बताओ.. कैसे जाप किया आपने... वो व्यक्ति बोला:- "" भार्यां भक्षतु भैरवी""  पण्डित जी बोले:- तुम्हारी पत्नी मरेगी नही तो और क्या होगा। एक तो पहले ही वह मरणासन्न स्थिति में थी.. और रही सही कसर तुमने " रक्षतु" कि जगह "" भक्षतु!" जप करके पूरी कर दी.. भक्षतु का अर्थ है !" खा जाओ... मन्त्र तुमने गलत जपा और अब दोष मुझे दे रहे हो।
तब उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ.. तथा उसने पण्डित जी से क्षमा माँगी ।

     मित्रों इस लेख का सार यही है कि जब भी आप किसी मन्त्र का जाप अपने किसी विशेष मनोरथ को पूर्ण करने के लिये करे तब क्रिया ओर मन्त्र शुद्धि पर पूरा ध्यान दे। अशुद्ध पढने पर मन्त्र का अनर्थ हो जायेगा... ओर मन्त्र का अनर्थ होने पर आपके जीवन में भी अनर्थ होने कि संभावना बन जायेगी। इसलिये मित्रों अगर किसी मन्त्र का शुद्ध उच्चारण आपसे नहीं हो रहा है.. तो बेहतर यही रहेगा.. कि आप उस मन्त्र के साथ छेडछाड नहीं करे, बल्कि योग्य पंडित द्वारा ही जाप करवायें।



     Astrologer & Philosopher
           Gopal Arora
                                                                                   






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22 April 2015

इन चार उपायों से बड़े चिंतक की शब्दावली विकसित करें


यहाँ चार तरीक़े दिए जा रहे है, जिनकी मदत से आप बड़े चिंतक की शब्दावली विकसित कर सकते है। 

     1. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए बड़े, सकारात्मक, आशावादी शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करें।  जब कोई आपसे पूछता है, "आप आज कैसा महसूस कर रहे है?" और आप उसे जवाब देते है, "मै थका हुआ हुँ ( मुझे सिरदर्द है, काश कि आज शनिवार होता, मेरा आज बहुत बुरा हाल है )" तो आप अपनी स्थिति को अपने ही हाथों ख़राब कर रहे है।  इसका अभ्यास करें :- यह एक बहुत आसान बात है, परंतु इसमें बहुत शक्ति है।  जब भी कोई आपसे पूछे, "आप कैसे है ?" या "आप आज कैसा महसूस कर रहे है ?" तो जवाब में हमेशा कहें, "बहुत बढ़िया! धन्यवाद और आप कैसे है ?"  या कहे "बेहतरीन" या "शानदार"।  हर मौक़े पर कहें कि आप बढ़िया महसूस कर रहे है और आप सचमुच बढ़िया महसूस करने लगेंगे और ज्यादा बड़ा भी।  एक ऐसे व्यक्ति बनें जो हमेशा बढ़िया महसूस करता है।  इससे दोस्त बनते है। 

     2. दूसरे लोगों का वर्णन करते समय चमकीले, खुशनुमा, सकारात्मक शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करें।  यह नियम बना लें कि आप अपने सभी दोस्तों और सहयोगियों के लिए बड़े, सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करेंगे।  जब आप किसी के साथ किसी तीसरे अनुपस्थित व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हो, तो आप उसकी बड़े शब्दों में प्रशंसा करे, "हाँ, वह बढ़िया आदमी है।"  "लोग कहते है उसका काम बहुत बढ़िया है।"  इस बात का बहुत ध्यान रखें कि आप उसकी बुराई न करें या घटिया भाषा का इस्तेमाल न करें।  देर सबेर तीसरे व्यक्ति को पता चल जाता है कि आपने क्या कहा था, और आपने जो बुराई की थी, वह आपको ही बुरा बना सकती है। 

     3. दूसरों का उत्साह बढ़ाने के लिए सकारात्मक भाषा का प्रयोग करें।  हर मौक़े पर लोगों की तारीफ़ करें।  अपनी पत्नी या पति की हर रोज़ तारीफ़ करें।  अपने साथ काम करने वालों की रोज़ तारीफ़ करें।  अगर सच्ची तारीफ़ की जाए, तो यह सफ़लता का औज़ार बन जाती है।  इसका प्रयोग करे! इसका प्रयोग बार-बार, हर बात करें।  लोगों के हुलिए, उनके काम, उनकी उपलब्धियों, उनके परिवार की तारीफ़ करें। 

     4. दूसरों के सामने योजना प्रस्तुत करते समय सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें।  जब लोग इस तरह की बात सुनते है - "मै आपको एक अच्छी खबर सुनाना चाहता हुँ।  हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है..." तो उनके दिमाग़ में आशा जाग जाती है।  परंतु जब वे इस तरह की कोई बात सुनते है, "चाहे आप इसे पसंद करें या न करें, हमें यह काम करना है,"  तो दिमाग़ की बोझिल, बोअरिंग हो जाती वे भी इसी तरह के हो जाते है।  जीत का वादा करें और उनकी आँखों में चमक आ जाएगी।  जीत का वादा करें और आपको समर्थन हासिल हो जाएगा।  महल बनाएं, क़ब्र न खोदें!  

15 April 2015

अपने सच्चे आकार को नापें और जानें कि आप कितने योग्य है


     अब अगर इतने सरे लोगों की सोंच इतनी छोटी है, तो इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप सचमुच बड़ा सोचते है तो आपके सामने बहुत कम प्रतियोगिता है और आपके लिए एक बहुत बड़े करियर का रास्ता खुला है। 

     सफलता के मामले में लोगों को इंच या पौंड के हिसाब से नही नापा जाता, न ही उन्हें कॉलेज की डिग्री यों से या पारिवारिक पृष्ठ भूमि के पैमाने से नापा जाता है, उन्हें तो उनकी सोच के आकार से नापा जाता है।  आप कितना बड़ा सोंचते है, यही आपकी उपलब्धियों के आकार को तय करता है।  देखते है कि हम किस तरह अपनी सोच को बड़ा कर सकते है। 

     कभी आपने खुद से पूछकर देखा है, "मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या है ?"  शायद इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है - यानि की खुद को सस्ते में बेचने की कमजोरी।  आत्म-मूल्यांकन में कमी अनगिनत तरीकों से साफ़ दिखती है।  जॉन अख़बार में एक नौकरी का विज्ञापन देखता है।  वह इसी तरह की नौकरी करना चाहता है।  परंतु वह इसके लिए कोई कोशिश नही करता क्योंकि वह सोचता है, "मै इस नौकरी के लिए पर्याप्त योग्य नहीं हूँ, इसलिए कोशिश करने की मेहनत क्यों करुँ ?"  या जिम जोन के साथ डेटिंग पर जाना चाहता है, परंतु वह उससे नहीं पूछता क्योंकि उसे लगता है कि वह तैयार नही होगी। 

     टॉम को लगता है कि मिस्टर रिचर्ड्स उसके माल के अच्छे ग्राहक हो सकते है, परंतु टॉम मिस्टर रिचर्ड्स जैसे बड़े आदमी उससे नहीं मिलेंगे।  पीट नौकरी का आवेदन भर रहा है।  उसमे एक प्रशन पूछा जाता है, "आप शुरुवात में कितनी तनख़्वाह चाहेंगे?"  पीट एक छोटी-सी रक़म लिख देता है क्योंकि उसे लगता है कि वह इससे ज्यादा तनख़्वाह के योग्य नही है, जबकि वह इससे ज्यादा तनख़्वाह पाना चाहता है। 

     हज़ारों सालों से दार्शनिक हम यह अच्छी सलाह देते आ रहे है - खुद को जाने।  परंतु ज्यादातर लोग इस सलाह का मतलब यह निकालते है कि खुद को नकारात्मक पहलू को जाने।  ज्यादातर आत्म-मूल्यांकनों में लोग अपनी गलतियों, कमियों, अयोग्यताओं की लंबी सी मानसिक सूची बना लेते है। 

     हमें अपनी कमियाँ पता हो, अच्छी बात है।  इनसे हमें यह पता चलता है कि हमें इन क्षेत्र में सुधार करना है।  परंतु अगर हम सिर्फ़ अपने नकारात्मक पहलू को ही जान पाए तो हम परेशानी में फँस जाएँगे।  हमारा मूल्य अपनी नज़रों में कम हो जाएगा। 

     यह एक अभ्यास दिया गया है जिससे आप अपने सच्चे आकार को नाप सकते है।  मैंने इसे एक्जीक्यूटिव्ज और सेल्स पर्सनल्स के अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आज़ माया है।  यह वाक़ई काम करता है। 

     1. अपने पाँच प्रमुख गुणों को तय करें।  किसी निष्पक्ष दोस्त की मदत लें - जैसे आपकी पत्नी, आपका सीनियर, आपका प्रोफ़ेसर - कोई समझदार व्यक्ति जो आपको सच्ची राय दे सके।  ( गुणों के उदाहरण है शिक्षा, अनुभव, तकनीकी योग्यता, हुलिया, संतुलन घरेलू जीवन, रवैया, व्यक्तित्व, लीडरशिप की योग्यता )।

     2. हर गुण के सामने अपने उन तीन परिचित व्यक्तियों के नाम लिख लें हो बेहद सफ़ल है परंतु उनमें यह गुण उतनी मात्र में नही है, जितनी मात्र में यह आपमें है।
     इस अभ्यास को पूरा कर लेने पर आप पाएँगे कि आप किसी न किसी बात में कई सफ़ल लोगों से आगे है।

     ईमानदारी से आप एक ही निष्कर्ष पर पहुँच सकते है - आप जितना सोचते है, आप उससे बड़े है।  इसलिए, आप अपनी सोच को भी अपने साली आकार के हिसाब से बना लें।  उतना ही बड़ा सोचें जितने बड़े आप है! और कभी, खुद को सस्ते में न बेचें!

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11 April 2015

विशवासपूर्ण काम करके विशवासपूर्ण सोंच विकसित करें


      यहाँ एक मनो वैज्ञानिक सिद्धांत दिया जा रहा है जो 25 बार पढ़ने लायक है।  इसे तब तक पढ़ते रहे, जब तक कि यह आपके दिमाग़ में पूरी तरह से न घुस जाए :- विशवास पूर्ण चिंतन के लिए विशवास पूर्ण काम करें। 

     महान वैज्ञानिक डॉ. जॉर्ज. क्रेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अप्लाइड साइकलॉजी ( शिकागो :- हॉप किन्स सिंडिकेट, इन्क 1950 )  में लिखा है, "याद रखें, काम ही भावनाओं के अग्रज होते है।  हम अपनी भावनाओं को तो सीधे नियंत्रित नहीं कर सकते।  परंतु हम अपने कामों को नियंत्रित करके अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते है।  वैवाहिक समस्याओं और ग़लत फहमियो को दूर करने के लिए सच्चे मनो वैज्ञानिक तथ्यों को जानें।  हर दिन सही काम करें और जल्दी ही आप में सही भावनाएँ जाग जाएगी!

     मनो वैज्ञानिक के अनुसार शारीरिक गतिविधियों में बदलाव करके हम अपने रवैए को बदल सकते है।  उदाहरण के तौर पर, आप अगर मुस्कराने की क्रिया करते है, तो आप सचमुच मुस्कराने के मूड में आ जाएंगे।  जब आप अपने शरीर को झुकाने के बजाय तान लेते है तो आप ज्यादा सुपीरियर महसूस करने लगते है।  इसके उलट अगर, त्यौरियां चढ़ाकर देखें तो पाएँगे कि आप त्यौरियां चढ़ाने के मूड़ में आ गए है। 

     यह सिद्ध करना तो आसान है कि अपनी क्रियाओं पर काबू करके आप अपनी भावनाओं को बदल सकते है।  जो लोग अपना परिचय देने में संकोच करते है, वे अपने संकोच को आत्म विशवास में बदल सकते है अगर वे सिर्फ कुछ सामान्य क्रियाएँ करे - पहली बात तो यह कि सामने वाले से गर्मजोशी से हाथ मिलाए।  इसके बाद, सामने वाले व्यक्ति की तरफ एकल सीधे देखें।  और तीसरी बात, सामने वाले से कहें, "मुझे आपसे मिलकर ख़ुशी हुई।"

     इन तीन साधारण क्रियाओं से आपका संकोच अपने आप और तत्काल दूर हो जाएगा।  आत्म विशवास से भरी क्रिया की वजह से आप में अपने आप आत्म विशवास आ जाएगा। 

     आत्मविशवासपूर्ण चिंतन करने के लिए आत्मविशवास की क्रियाएँ करें।  जिस तरह की भावनाएँ आप स्वयं में जगाना चाहते है, उस तरह के काम करें।  नीचे आत्मविशवास बढ़ाने के लिए पॉँच अभ्यास दिए है।  इन्हें ध्यान से पढ़े।  फिर इनका अभ्यास करने की पूरी कोशिश करें और आप अपना आत्मविशवास काफ़ी बढ़ा-चढ़ा पाएँगे। 

     1. आगे की बेंच पर बैठे।  कभी आपने मीटिंग या चर्च या क्लास रूम या किसी और तरह की सभा में इस बात पर गौर किया की पीछे की सीटें सबसे पहले भर जाती है ? ज्यादातर लोग पीछे की लाइन में इसलिए बैठते है ताकि वे "लोगों की नज़रों में न आए"।  और वे लोगों की नज़रों में आने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उनमें आत्मविशवास नहीं आता। 

     2. नज़रें मिलाकर बात करने का अभ्यास करें।  कोई व्यक्ति किस तरह अपनी आँखों का प्रयोग करता है, इससे भी हमें उसके बारे में काफ़ी जानकारी मिल सकती है।  अगर कोई आपकी आँखों में सीधे नहीं देखता है, तो आपके मन में यह सवाल तत्काल आ जाता है, "यह व्यक्ति क्या छुपाने की कोशिश कर रहा है ? यह व्यक्ति किस बात से डरा हुआ है ? क्या यह मुझे धोका देना चाहता है ? इस व्यक्ति के इरादे क्या है ?"

     3. 25% तेज़ चले।  आत्मविशवास बढ़ाने के लिए 25% तेज़ चलने की तकनीक का प्रयोग करके देखें।  अपने कंधो को सीधा कर लें, अपने सर को ऊपर उठा लें, और थोड़े तेज़ कदमों से आगे की तरफ़ बढे चलें।  आप पाएँगे कि  आपका आत्मविशवास भी बढ़ चूका है। 

     कोशिश करें और परिणाम खुद देखें। 

     4. बोलने की आदत डालें। कई तरह के समूह के साथ काम करते हुए मैंने यह पाया है कि बहुत से समझदार और योग्य लोग चर्चाओं में भाग नही लेते है।  चर्चा के दौरान उनका मुँह ही नही खुल पता।  ऐसा नही है कि उनके पास बाकि लोगों जितने अच्छे विचार नही होते या वे बोल नही सकते।  इसका कारण सिर्फ़ यह होता है कि उनमे आत्मविशवास नहीं होता। 

     5. बड़ी मुस्कराहट दें।  ज्यादा लोगों का कहना है कि मुस्कराहट से उन्हें सच्ची ताक़त मिलती है।  उन्हें बताया गया है कि मुस्कराहट आत्मविशवास की कमी को दूर करने के लिए एक बढ़िया दवा है।  परंतु ज्यादातर लोग इस बात में इसलिए यक़ीन नहीं करते, क्योंकि जब वे डरे होते है तो वे मुस्कराने की कोशिश ही नही करते। 
     यह छोटा-सा पयोग करके देखें।  आप पराजित अनुभव करें और बड़ी मुस्कराहट दे - एक साथ, एक ही समय में यह संभव नही है।  आप ऐसा कर ही नही सकते।  बड़ी मुस्कराहट आपको आत्मविशवास देती है।  बड़ी मुस्कराहट आपका दर भगाती है, चिंता दूर करती है और निराशा हर लेती है। 

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10 April 2015

अपनी अंतरात्मा के हिसाब से काम करके आत्म-विशवास बढ़ाएँ


     हम में से हर एक व्यक्ति में सही होने, सही सोचने और सही काम करने की इच्छा होती है।  जब हम इस इच्छा के विपरीत व्यवहार करते है तो हम अपनी अंतरात्मा में कैंसर की बीमारी आमंत्रित कर लेते है।  यह कैंसर बढ़ता है और हमारे आत्म विशवास को कम करता जाता है।  इसलिए इस तरह कोई काम न करें, जिसे करने के बाद आपको यह दर सताने लगे, "क्या मै पकड़ा जाऊँगा ? क्या लोगों को इस बात का पता चल जाएगा ? क्या मै बचने में सफ़ल हो पाउँगा ?"

     धोखा देकर और अपना आत्मविशवास कम करके "अच्छे नंबर" लाने की यानी कि सफ़ल होने की कोशिश कभी न करें। 

     मुझे यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि पॉल को सीख मिल गयी।  उसने सही काम करने का व्यावहारिक मूल्य समझ लिया।  मैंने सुझाव दिया कि वह बैठ जाए और एक बार फिर परीक्षा दे।  उसने मुझसे सवाल किया, "परंतु क्या आप मुझे कॉलेज से नहीं निकालेंगे ?"  मेरा जवाब था, "मै निष्कासन के नियम जनता हूँ।  परंतु, अगर हम धोखा देने वाले सारे विद्यार्थियों को कॉलेज से निकाल देंगे तो हमारे आधे प्रोफेसरों की छुट्टी हो जाएगी।  और अगर हम धोखा देने का विचार करने वाले सभी विद्यार्थियों को निकाल देंगे, तो हमें कॉलेज में ताले लगाने पड़ेंगे।"

     "इसलिए मै घटना को भूलने के लिए तैयार हू, अगर तुम एक काम करो।"

     "बिलकुल," उसने कहा। 

     मै उसे एक पुस्तक दी।  पुस्तक का नाम था fifty years with the golden rule. इसे देते हुए मैंने उससे कहा, "पॉल, इस पुस्तक को पढ़ो और बढ़ने के बाद इसे वापस कर देना।  जे. सी. पेनी के खुद के शब्दों में यह जाने कि किस तरह सही काम करने की वजह से वे अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्तियों के समूह में शामिल हो गए।" 

     सही काम करने से आपकी अंतरात्मा संतुष्ट रहती है।  और इससे आत्मविशवास भी बढ़ता है।  जब हम कोई गलत काम करते है, तो दो नकारात्मक बातें होती है।  पहली बात तो यह कि हम में अपराध बोध आ जाता है और इस अपराध बोध से हमारा आत्मविशवास कम हो जाता है।  दूसरी बात यह कि देर-सबेर दूसरे लोगों को हमारे ग़लत काम की जानकारी मिल जाती है और उनका हम पर से विशवास उठ जाता है। 

     सही काम करें और अपने आत्मविशवास को बनाए रखें।  यही चिंतन का कारगर तरीक़ा है। 

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9 April 2015

सेहत के बहानासाइटिस को हराने के चार सकारात्मक क़दमों का परयोग करें


सेहत के बहानासाइटिस के बचाव के सर्वश्रेष्ठ वैक्सीन के चार डोज़ है :-

     1. अपनी सेहत के बारे में बात न करें।  आप किसी बीमारी के बारे में जितनी ज्यादा बात करेंगे, चाहे वह साधारण सी सर्दी ही क्यों न हो, वह बीमारी उतनी ही बिगड़ती जाएगी।  बुरी सेहत के बारे में बाते करना काँटों को खाद-पानी देने की तरह है।  इसके अलावा, अपनी सेहत के बारे में बातें करते रहना एक बुरी आदत है।  इससे लोग बोर हो जाते है।  इससे आपको आत्म-केंद्रित और बुढ़िया की तरह बातें करने वाला समझा जा सकता है।  सफ़लता की चाह रखने वाले आदमी अपनी "बुरी" सेहत के बारे में चिंता नही करता।  अपनी बीमारी का रोना रोने से आपको थोड़ी सहानुभूति तो मिल सकती है, परन्तु जो आदमी हमेशा शिकायत करता रहता है, उसे कभी किसी का सम्मान, आदर या वफ़ादारी नहीं मिल सकते। 

     2. अपनी सेहत के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दे।  डॉ. वॉल्टर अल्वरेज़ विश्वप्रसिद्ध मेयो क्लीनिक में एमेरिटस कंसल्टेंट है।  उन्होंने हाल ही में लिखा है, "मै हमेशा फ़िजूल की चिंता करने वाले लोगों को ऐसा न करने की सलाह देता हूँ।  उदाहरण के तौर पर, मैंने एक आदमी को देखा जिसे इस बात का पूरा विशवास था कि उसका 'गाल ब्लैडर' ख़राब है, हालाँकि आठ बार अलग़-अलग क्लीनिकों में एक्स-रे कराने पर भी उसका गाल ब्लैडर पूरी तरह सही दिख रहा था और डॉक्टरों का कहना था कि यह सिर्फ़ उसके मन का वहम है और दरअसल उसे कोई बीमारी नहीं है।  मैंने उससे विनंती की वह अब तो मेहरबानी करके अपने गाल ब्लैडर का एक्स-रे कराना छोड़ दे।  मैंने सेहत का जरूरत से ज्यादा ध्यान रखने वाले सैकड़ो लोगों को बार-बार जबरन ई.सी.जी. कराते देखा है और मैंने उनसे भी यही विनंती की है कि वे अपनी बीमारी के बारे में फ़ालतू की चिंता करना छोड़ दें। 

     3. आपकी सेहत जैसी भी हो, आपको उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए।  एक पुरानी कहावत है, "मै अपने फटे हुए जूतों को लेकर दुःखी हो रहा था, परंतु जब मैंने बिना पैरों वाले आदमी को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही, इसके बजाय मै कृतज्ञ हो चला।"  इस बात पर शिकायत करने के बजाय कि आपकी सेहत में क्या "अच्छा नहीं" है, आपको इस बारे में खुश और कृतज्ञ होना चाहिए कि आपकी सेहत में क्या 'अच्छा' है।  अगर आप कृतज्ञ होंगे तो आप कई असली बीमारियों से भी बचे रहेंगे। 

     4. अपने आपको यह अक्सर याद दिलाए, "जंग लगने से बेहतर है घिस जाना।"  आपको जीवन मिला है आनंद लेने के लिए।  इसे बर्बाद न करें।  जिंदगी जीने के बजाय अगर आप चिंता करते रहेंगे, तो आप जल्दी ही किसी अस्पताल में भर्ती नज़र आएँगे। 

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8 April 2015

विशवास की शक्ती को विकसित करें


विशवास की शक्ति को प्राप्त करने और विशवास को दृढ़ बनाने के लिए तीन उपाय किए जा सकते है। 

     1.  सफ़लता की बात सोचें, असफ़लता की बात न सोचें।  नौकरी में, घर में, असफ़लता की जगह सफ़लता के बारे में सोचें।  जब आपके सामने कोई कठीन परिस्थिति आए, तो सोचें "मै जीत जाऊँगा," यह न सोचें "शायद मै हार जाऊँगा।"  जब आप किसी से प्रतियोगिता करें, तो सोचें, "मै उसके जितना योग्य नहीं हू।"  जब अवसर नज़र आए, तो सोचें "मै यह कर सकता हू," यह न सोचें "मै इसे नही कर सकता।"  अपनी चिंतन प्रक्रिया पर इस विचार को हावी हो जाने दें, "मै सफ़ल होकर दिखाऊँगा।"  सफ़लता के बारे में सोचने से आपका दिमाग़ ऐसी योजना बना लेता है जिससे आपको सफ़लता मिलती है।  असफ़लता के बारे में चिंतन करने से आपका दिमाग़ ऐसे विचार सोचता है, जिन से आपको असफ़लता हाथ लगती है। 

     2.  अपने आपको बार-बार याद दिलाए कि आप जितना समझते है, आप उससे कहीं बेहतर है।  सफ़ल लोग सुपरमैन नही होते।  सफ़लता के लिए सुपर-इंटेलेक्ट का होना जरूरी नही है।  न ही सफ़लता के लिए किसी जादुई शक्ति या रहस्य मयी तत्व की आवश्यकता होती है।  और सफलता का भाग्य से भी कोई संबंध नहीं होता।  सफ़ल लोग साधारण लोग ही होते है, पर ऐसे लोग होते है जिन्हें अपने आप पर विशवास है, अपनी क्षमताओं पर विशवास है और जो मानते है कि वे सफल हो सकते है।  कभी भी, हाँ, कभी भी, खुद को सस्ते में न बेचें। 

     3.  बड़ी सोंच में विशवास करें।  आपकी सफ़लता का आकार कितना बड़ा होगा, यह आपके विशवास के आकार से तय होगा।  अगर आपके लक्ष्य छोटे होंगे, तो आपकी उपलब्धिया भी छोटी होंगी।  अगर आपके लक्ष्य बड़े होंगे, तो आपकी सफलता भी बड़ी होगी।  एक बात कभी न भूले! बड़े विचार और बड़ी योजनाएं अक्सर छोटे विचारों और छोटी योजनाओं से आसान होते है। 

     जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के चेयरमैन राल्फ जे. कॉर्डिनेर ने लीडरशिप कॉन्फ्रेंस में कहा था, "… जो भी लीडर बनना चाहता है, उसे स्वयं के स्वयं की कंपनी के विकास की योजना बना लेनी चाहिए और इसका दॄढ़ निष्चय कर लेना चाहिए।  कोई भी किसी दूसरे व्यक्ति के विकास का आदेश नहीं दे सकता, कोई व्यक्ति दौड़ में आगे रहेगा या पीछे रह जाएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी तैयारी कैसी है।  यह ऐसी चीज़ है जिस में समय लगता है, मेहनत लगती है और इस में त्याग की आवश्यकता होती है।  आपके लिए यह कोई दूसरा नहीं कर सकता।"

     मिस्टर सार्डिनेर की सलाह में दम है और यह व्यावहारिक है।  इस पर चलें।  जो लोग बिज़नेस मैनेजमेंट, सेल्स लाइन, इंजीनिरिंग, धार्मिक संस्थाओं, लेखन, अभिनय और दूसरे क्षेत्रों में चोटी पर पहुँचते है वे निष्ठा और लगन के साथ आत्म-विकास की योजना पर चलकर ही वहाँ पहुँच पाए है। 

     किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम में - और यही इस वेबसाइट का लक्ष्य भी है - तिने बातें होनी चाहिए।  इसमें सामग्री होनी चाहिए - यानी क्या किया जाए।  दूसरी बात यह कि इसमें तरीक़ा होना चाहिए - यानी कैसे किया जाए।  और तीसरी बात यह की इसे एसिड टेस्ट में खरा उतरना चाहिए - यानी कि इससे परिणाम मिलना चाहिए।      

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1 April 2015

टी. वी. के संदर्भ में सावधान रहें


     T.V. के कारण आज जितना समय बर्बाद हो रहा है, उतना इतिहास में कभी किसी दूसरी वजह से नहीं हुआ - वैसे facebook भी बहुत तेज़ी से इस श्रेणी में आता जा रहा है।  T.V. के कई दुष्प्रभाव होते है, लेकिन हम यहाँ पर केवल समय की बर्बादी के बारे में बात करेंगे।  एक survey में यह पाया गया कि लोग हर सप्ताह लगभग 17 घंटे tv देखते है यानी लगभग ढ़ाई घंटे प्रति दिन।  इसका मतलब है कि लोग हर दिन अपने पास उपलब्ध सक्रिय समय का 20% हिस्सा टी.वी देखने में गवा रहे है। 

     जरा गौर से सोचें, अगर आपने टी.वी नहीं देखा, तो क्या आफ़त आ जायेगी ?  अक्सर होता यह है कि हम यह सोचकर टी.वी देखने बैठते है कि बस आधा घंटा देखेंगे।  आधा घंटे बाद दूसरे चैनल पर कोई अच्छा कार्यक्रम दिख जाता है और इस तरह कब दो घंटे हो जाते है, पता ही नहीं चलता।  इस चक्कर में आपके बहुत से जरूरी काम अधूरे रह जाते है।  टी.वी के बहुत से समर्थक इसके शैक्षिक महत्त्व का दावा करते है, लेकिन मुझे आज तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जो सिर्फ़ शैक्षिक महत्त्व के लिए टी.वी देखता हो।  अगर शिक्षा ही ग्रहण करनी है, तो टी.वी से बेहतर विकल्प मौजूद है - पुस्तकें पढ़े या इंटरनेट से जानकारी लें।  वैसे यदि आप टी.वी पर केवल ज्ञानवर्धक कार्यक्रम ही देखते है, तो यह अध्याय आपके लिए नहीं है।  मेरे एक परिचित है, जिनके यहाँ टी.वी सुबह से रात तक चलता रहता है।  सुबह वे खुद न्यूज़ देखते है, बीच-बीच में बच्चें स्कूल जाने से पहले कार्टून देख लेते है, दोपहर में पत्नी के सीरियल्स और गाने चलते है, शाम को वे ख़ुद घर लौटकर न्यूज़ और सीरियल्स देखते है, बीच-बीच में बच्चें कार्टून देखते है।  यानि  टी.वी के प्रति ही समर्पित होता है।  टी.वी उनके परिवार का एक स्थायी और सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य बन चूका है।  और तो और, वे खाना भी टी.वी देखते हुए ही खाते है, जिससे न तो उन्हें खाने का स्वाद आता है, न ही उन्हें यह अंदाज़ा रहता है कि  वे कितना खा गए।  नतीजा यह होता है कि  वे ज़रूरत से ज्यादा खाते है और दिनोदिन मोटे होते जाते है। 

     बच्चे कितनी देर तक टी.वी देखते है, इसका हिसाब लगाना मुश्किल होता है।  इसका एक उदाहरण देखें - चौथे ग्रेड की क्लास में एक सर्वे किया गया कि विद्यार्थी कितने घंटे टीवी देखते है।  तब उस क्लास में अमेरिकी संगीतकार रॉब जॉम्बी भी पढ़ते थे।  रॉब के शिक्षकों के होश उड़ गए, जब उन्हें पता चला कि रॉब एक दिन में नौ घंटे टीवी देखता है।  उन्होंने रॉब से पूछा कि रात को देर तक जगे बिना यह इतने समय टीवी कैसे देख लेता है।  उसका जवाब था, 'मै सुबह जल्दी उठ जाता हुँ और कई बार तो मुझे कृषि संबंधी कार्यक्रम देखने पड़ते है, क्योंकि इतनी सुबह वाही कार्यक्रम आते है।'  इस प्रसंग को कई साल हो चुके है।  अब तो चौबीसों घंटे मनपसंद कार्यक्रम चलते रहते है और अपने मन पर काबू रखने के लिए काफी अनुशासन की जरूरत होती है। 

     यदि आप अपने समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना चाहते है, तो टीवी के संदर्भ में सावधान रहें। 

     अख़बार टीवी की तुलना में जानकारी का बेहतर साधन है।  अख़बार हमें पुरे संसार की जानकारी देता है और हमारा ज्ञान बढ़ता है, लेकिन इसके दूसरे पहलू पर भी नज़र डालकर देख लें।  अगर सचिन तेंदुलकर ने अपने क्रिकेट करियर का 100 वा शतक बना दिया, तो उसके विस्तृत विवरण पढ़ने से क्या लाभ है, जब तक कि आपकी क्रिक्रेट में रूचि न हो ?  कैटरिना कैफ़ या सलमान खान के प्रेम प्रसंगों के बारे में पढ़ने से आपको क्षणिक आनंद के शिव क्या मिल रहा है ?  अख़बार में पढ़ने के लिए चटपटी या मसालेदार खबरों के बजाय केवल सकारात्मक और ज्ञानवर्द्धक ख़बरें ही चुनें, क्योंकि इस तरह आपका बहुत सा समय बच सकता है। 

     महत्त्वपूर्ण सिद्धांत यह हैं कि अपने काम से काम रखें और दीगर बातों को नज़र अंदाज कर दे।  और यह बात टीवी और अख़बार के संदर्भ में ही नहीं, हर चीज़ पर लागू होती है।  ब्रिटिश गायक क्रैग डेविड जैसे बनें, जो हर दिन अपनी दाढ़ी सँवारने में 40 मिनट बर्बाद कर देते थे।  अगर आप इस सिद्धांत पर अमल करते है, तो आप कम से कम आधे घंटे का समय बचा लेंगे, जिसमें आप अपने महत्त्वपूर्ण काम निबटा सकते है। 

इस तरह सीखें, जैसे आप हमेशा जिन्दा रहेंगे, इस तरह से जिए जैसे आप कल ही मरने वाले हो। 
                                                                 - अज्ञात     

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