7 March 2015

अपने प्राइम टाइम में काम करें



     टेलिविजन पर प्राइम टाइम में - यानि रात आठ बजे से दस बजे तक - विज्ञापन की किंमत सबसे ज्यादा होती है।  विज्ञापन उतने समय का रहता है परन्तु इसकी किंमत बढ़ जाती है।  किंमत बढ़ने का कारण सिर्फ़ यह होता है कि वह विज्ञापन प्राइम टाइम में प्रसारित किया जाता है, जिसमे इसे ज्यादा दर्शकों द्वारा देखा जाता है।

     टेलीविज़न के प्राइम टाइम की अवधारणा से हम यह सीख सकते है कि हमारे-आपके लिए भी दिन के चौबिसौ घंटे एक से नही होते।  दिन के किसी खास समय आपकी ऊर्जा, विचार-शक्ति, उत्साह और कार्यक्षमता बाकि समय की तुलना में अधिक होती है।  यही आपका प्राइम टाइम है।  ज्यादातर लोगों के लिए सुबह का समय प्राइम टाइम होता है, जब वे बड़े-बड़े काम चुटकियों में कर सकते है।  परन्तु ध्यान रहे, हर व्यक्ति का प्राइम टाइम अलग-अलग़ होता है।  कई लोगों के लिए रात का समय प्राइम टाइम हो सकता है और कइयों के लिए दोपहर का।  आपका प्राइम टाइम चाहे सुबह का हो या रात का, महत्त्वपूर्ण बात इसे पहचानना है।

     आपका प्राइम टाइम कोन सा है, यह पहचानना इसलिए जरुरी है, ताकि आप अपने समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग कर सकें।  अपने सबसे महत्त्वपूर्ण या रचनात्मक काम इसी दौरान करे, ताकि वे अच्छी तरह से और जल्दी हो सके।  अपने प्राइम टाइम में छुटपुट काम करके उसे बर्बाद न करे, क्योंकि छुटपुट काम तो आप बाकि के समय में भी कर सकते है।

     यदि आप सुबह के समय ज्यादा फुर्तीले, ऊर्जावान और चुस्त होते है, यानि सुबह का वक़्त आपका प्राइम टाइम है, तो आप एक तरह से सौभाग्यशाली है।  अगर आप दोपहर में एक झपकी ले लीजिए, तो आप एक दिन में दो सुबहें प्राप्त कर सकते है।  दोपहर की झपकी के बाद आप लगभग उतने ही फुर्तीले, ऊर्जावान और चुस्त हो सकते है, जितने की सुबह थे।

     अक्सर इस बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है कि समय की मात्र और गुणवत्ता में कोई सीधा संबंध नही होता।  कई बार तो एक घंटे में ही इतना कुछ हो जाता है, जो आम तौर पर एक दिन में नही हो पता।  याद रखे, समय की मात्र के बजाय उसकी सघनता और गुणवत्ता ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।  काम के लंबे घंटे महत्त्वपूर्ण नही है, महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे ठोस और सघन हो।  इसी को अंग्रेजी में क्वालिटी टाइम कहा जाता है।

     ध्यान रखिए, वह व्यक्ति ज्यादा सफल नही होता, जो दिन में आठ घंटे काम करने का लक्ष्य बनता है - ज्यादा सफल तो वह व्यक्ति होता है, जो दिन में आठ या नौ काम करने का लक्ष बनता है।  दोनों में फर्क इतना है कि पाहला व्यक्ति समय की मात्र को महत्त्व देता है और दूसरा समय की गुणवत्ता को और इसी से उनकी सफलता में जबरदस्त फर्क पड़ता है।


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