12 March 2015

आप जीतने बड़े हो, अपने आपको उतना ही बड़ा मानें


     किसी व्यक्ति की शब्दावली का महत्त्वपूर्ण पैमाना उसके शब्दों की संख्या या आकर नहीं है।  असली महत्त्व की बात तो यह है कि उसके शब्दों का उस पर और सामने वाले पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। 

     यहाँ एक मुलभुत बात बताई जा रही है - हम शब्दों और वाक्यों में नहीं सोंचते है।  हम तस्वीरों और बिंबों में सोचते है।  शब्द विचारों के लिए कच्चा माल है।  जब इन्हें बोला जाता है या पढ़ा जाता है तो हमारा दिमाग़ी कंप्यूटर इन शब्दों को अपने आप तस्वीरों में बदल लेता है।  हर शब्द, हर वाक्य, आपके दिमाग़ में अलग़ तस्वीर बनाता है।  अगर कोई यह कहता है, "जिम ने एक नया स्पलिट-लेवल ख़रीदा है," तो हमारे दिमाग़ में एक अलग तस्वीर बनती है।  परन्तु अगर आपको बताया जाता है, "जिम ने एक रैंच हाउस ख़रीदा है" तो आपके दिमाग में दूसरी ही तस्वीर बनती है।  हमारे दिमाग़ में अलग़-अलग़ तस्वीरें अलग़-अलग शब्दों की वज़ह से बनती है। 

     इसे इस तरीक़े से देखें।  जब आप बोलते है या लिखते है तो आप एक तरह से दूसरे लोगों के दिमाग़ में फिल्में दिखने वाले प्रोजेक्टर का काम कर रहे है।  और आप जिस तरह की फ़िल्म दिखाएँगे, सामने वाले पर आपका प्रभाव वैसा ही पड़ेगा। 

     मान लीजिए आप लोगों को यह बताते है, "मुझे यह बताते हुए दुःख हो रहा है कि हम असफ़ल हो गए है।"  इस वाक्य का उन लोगों पर क्या असर होगा? वे लोग इन शब्दों में हार और निशाना और दुःख के चित्र देखेंगे, जो "असफ़ल" शब्द में छुपे हुए है।  इसके बजाय अगर आप कहते है, "यह रहा एक नया उपाय, जिसमे हम असफ़ल हो सकते है," तो इससे उनका उत्साह बढ़ जाएगा और वे एक बार फिर कोशिश करने के लिए तैयार हो जाएँगे। 

     मान लीजिए आप कहते है, "हमारे सामने एक समस्या है।"  ऐसा कहने पर दूसरों के दिमाग़ में आप एक ऐसी तस्वीर बना देंगे जो सुलझाने में मुश्किल और अप्रिय होगी।  इसके बजाय यह कहे, "हमारे सामने एक चुनौती है।"  और इस वाक्य से आप एक ऐसी मानसिक तस्वीर बना देते है जिसमें आनंद है, खेल, करने के लिए कुछ अच्छा है। 

     या किसी समूह से कहे, "हमने काफ़ी बड़ा खर्च कर डाला।"  और लोगों को लगता है कि ख़र्च हुआ पैसा कभी वापस नहीं लौटेगा।  निष्चित रूप से यह नकारात्मक वाक्य है।  इसके बजाय यह कहे, "हमने काफ़ी बड़ा निवेश किया है," और लोग एक ऐसी तस्वीर बना लेंगे जिसमें बाद में लाभ लौटता हुआ दिखता है, और यह एक बहुत सुखद दॄश्य होता है।

     मुददे की बात यह है -  बड़े चिंतको में अपने और दूसरों के मस्तिष्क में सकारात्मक, प्रगतिशील और आशावादी तस्वीरें बनाने की कला होती है।  बड़ी सोच के लिए हमें ऐसे शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए जो बड़े, सकारात्मक मानसिक चित्र प्रदान कर सके। 

     पढ़ते समय खुद से पूछे, "मै किस तरह के मानसिक चित्र देख रहा हु ?"
नकारात्मक विचार -
1. इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा, हम कर चुके है। 

2. मैंने पहले भी यह बिज़नेस किया था और मै इसमें असफ़ल हो गया था।  मै अब दुबारा भूलकर भी कोशिश नहीं करूँगा। 

3. मैंने कोशिश करके देखा है, परन्तु यह माल बिकता ही नही है।  लोग इसे नही खरीदना चाहते। 

4. बाज़ार माल से अटा पड़ा है।  सोचिए, ७५% संभावित माल तो पहले ही बिक चूका है।  बेहतर है कि इससे बाहर निकल आऊ। 

5. उनके आर्डर छोटे होते है।  मै अब उनके पास नही जाऊँगा।
 सकारात्मक विचार -
1. हम अभी हारे नहीं है।  हम कोशिश करते रहेंगे।  यह रहा एक नया उपाय जिससे हम सफल हो सकते है। 

2. मै एक बार इसमें जरूर असफ़ल हुआ था, परंतु उसमे गलती मेरी ही थी अब मै एक बार फीर कोशिश करके देखूँगा और उस गलती को नही दोहराऊँगा।

3. अब तक मै यह माल नही बेच पाया हु।  परन्तु मै जानता हु कि यह अच्छा है और मै ऐसा फार्मूला ढूँढ ही लूंगा जिससे यह धड़ाधड़ बिकने लगे। 

4. सोचिए, २५% बाज़ार तो खुला पड़ा है।  मै बिलकुल कोशिश करूँगा।  यह बहुत बड़ा अवसर है।  

5. उनके आर्डर अब तक छोटे है।  मै ऐसी योजना बनाता हु जिसमे वे मुझसे और ज्यादा माल खरीदें। 


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