11 April 2015

विशवासपूर्ण काम करके विशवासपूर्ण सोंच विकसित करें


      यहाँ एक मनो वैज्ञानिक सिद्धांत दिया जा रहा है जो 25 बार पढ़ने लायक है।  इसे तब तक पढ़ते रहे, जब तक कि यह आपके दिमाग़ में पूरी तरह से न घुस जाए :- विशवास पूर्ण चिंतन के लिए विशवास पूर्ण काम करें। 

     महान वैज्ञानिक डॉ. जॉर्ज. क्रेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अप्लाइड साइकलॉजी ( शिकागो :- हॉप किन्स सिंडिकेट, इन्क 1950 )  में लिखा है, "याद रखें, काम ही भावनाओं के अग्रज होते है।  हम अपनी भावनाओं को तो सीधे नियंत्रित नहीं कर सकते।  परंतु हम अपने कामों को नियंत्रित करके अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते है।  वैवाहिक समस्याओं और ग़लत फहमियो को दूर करने के लिए सच्चे मनो वैज्ञानिक तथ्यों को जानें।  हर दिन सही काम करें और जल्दी ही आप में सही भावनाएँ जाग जाएगी!

     मनो वैज्ञानिक के अनुसार शारीरिक गतिविधियों में बदलाव करके हम अपने रवैए को बदल सकते है।  उदाहरण के तौर पर, आप अगर मुस्कराने की क्रिया करते है, तो आप सचमुच मुस्कराने के मूड में आ जाएंगे।  जब आप अपने शरीर को झुकाने के बजाय तान लेते है तो आप ज्यादा सुपीरियर महसूस करने लगते है।  इसके उलट अगर, त्यौरियां चढ़ाकर देखें तो पाएँगे कि आप त्यौरियां चढ़ाने के मूड़ में आ गए है। 

     यह सिद्ध करना तो आसान है कि अपनी क्रियाओं पर काबू करके आप अपनी भावनाओं को बदल सकते है।  जो लोग अपना परिचय देने में संकोच करते है, वे अपने संकोच को आत्म विशवास में बदल सकते है अगर वे सिर्फ कुछ सामान्य क्रियाएँ करे - पहली बात तो यह कि सामने वाले से गर्मजोशी से हाथ मिलाए।  इसके बाद, सामने वाले व्यक्ति की तरफ एकल सीधे देखें।  और तीसरी बात, सामने वाले से कहें, "मुझे आपसे मिलकर ख़ुशी हुई।"

     इन तीन साधारण क्रियाओं से आपका संकोच अपने आप और तत्काल दूर हो जाएगा।  आत्म विशवास से भरी क्रिया की वजह से आप में अपने आप आत्म विशवास आ जाएगा। 

     आत्मविशवासपूर्ण चिंतन करने के लिए आत्मविशवास की क्रियाएँ करें।  जिस तरह की भावनाएँ आप स्वयं में जगाना चाहते है, उस तरह के काम करें।  नीचे आत्मविशवास बढ़ाने के लिए पॉँच अभ्यास दिए है।  इन्हें ध्यान से पढ़े।  फिर इनका अभ्यास करने की पूरी कोशिश करें और आप अपना आत्मविशवास काफ़ी बढ़ा-चढ़ा पाएँगे। 

     1. आगे की बेंच पर बैठे।  कभी आपने मीटिंग या चर्च या क्लास रूम या किसी और तरह की सभा में इस बात पर गौर किया की पीछे की सीटें सबसे पहले भर जाती है ? ज्यादातर लोग पीछे की लाइन में इसलिए बैठते है ताकि वे "लोगों की नज़रों में न आए"।  और वे लोगों की नज़रों में आने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उनमें आत्मविशवास नहीं आता। 

     2. नज़रें मिलाकर बात करने का अभ्यास करें।  कोई व्यक्ति किस तरह अपनी आँखों का प्रयोग करता है, इससे भी हमें उसके बारे में काफ़ी जानकारी मिल सकती है।  अगर कोई आपकी आँखों में सीधे नहीं देखता है, तो आपके मन में यह सवाल तत्काल आ जाता है, "यह व्यक्ति क्या छुपाने की कोशिश कर रहा है ? यह व्यक्ति किस बात से डरा हुआ है ? क्या यह मुझे धोका देना चाहता है ? इस व्यक्ति के इरादे क्या है ?"

     3. 25% तेज़ चले।  आत्मविशवास बढ़ाने के लिए 25% तेज़ चलने की तकनीक का प्रयोग करके देखें।  अपने कंधो को सीधा कर लें, अपने सर को ऊपर उठा लें, और थोड़े तेज़ कदमों से आगे की तरफ़ बढे चलें।  आप पाएँगे कि  आपका आत्मविशवास भी बढ़ चूका है। 

     कोशिश करें और परिणाम खुद देखें। 

     4. बोलने की आदत डालें। कई तरह के समूह के साथ काम करते हुए मैंने यह पाया है कि बहुत से समझदार और योग्य लोग चर्चाओं में भाग नही लेते है।  चर्चा के दौरान उनका मुँह ही नही खुल पता।  ऐसा नही है कि उनके पास बाकि लोगों जितने अच्छे विचार नही होते या वे बोल नही सकते।  इसका कारण सिर्फ़ यह होता है कि उनमे आत्मविशवास नहीं होता। 

     5. बड़ी मुस्कराहट दें।  ज्यादा लोगों का कहना है कि मुस्कराहट से उन्हें सच्ची ताक़त मिलती है।  उन्हें बताया गया है कि मुस्कराहट आत्मविशवास की कमी को दूर करने के लिए एक बढ़िया दवा है।  परंतु ज्यादातर लोग इस बात में इसलिए यक़ीन नहीं करते, क्योंकि जब वे डरे होते है तो वे मुस्कराने की कोशिश ही नही करते। 
     यह छोटा-सा पयोग करके देखें।  आप पराजित अनुभव करें और बड़ी मुस्कराहट दे - एक साथ, एक ही समय में यह संभव नही है।  आप ऐसा कर ही नही सकते।  बड़ी मुस्कराहट आपको आत्मविशवास देती है।  बड़ी मुस्कराहट आपका दर भगाती है, चिंता दूर करती है और निराशा हर लेती है। 

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